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अ॒ग्निरी॑शे बृह॒तः क्ष॒त्रिय॑स्या॒ग्निर्वाज॑स्य पर॒मस्य॑ रा॒यः। दधा॑ति॒ रत्नं॑ विध॒ते यवि॑ष्ठो॒ व्या॑नु॒षङ्मर्त्या॑य स्व॒धावा॑न् ॥३॥

English Transliteration

agnir īśe bṛhataḥ kṣatriyasyāgnir vājasya paramasya rāyaḥ | dadhāti ratnaṁ vidhate yaviṣṭho vy ānuṣaṅ martyāya svadhāvān ||

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Pad Path

अ॒ग्निः। ई॒शे॒। बृ॒ह॒तः। क्ष॒त्रिय॑स्य। अ॒ग्निः। वाज॑स्य। प॒र॒मस्य॑। रा॒यः। दधा॑ति। रत्न॑म्। वि॒ध॒ते। यवि॑ष्ठः। वि। आ॒नु॒षक्। मर्त्या॑य। स्व॒धा॑ऽवान् ॥३॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:12» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:12» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजा और प्रजाजनो ! जो (अग्निः) अग्नि के सदृश जन (क्षत्रियस्य) क्षात्रधर्मयुक्त (बृहतः) बड़े (वाजस्य) वेग विज्ञान और (परमस्य) अत्यन्त श्रेष्ठ (रायः) धन आदि के मध्य में (ईशे) ऐश्वर्य्य करता है तथा (यविष्ठः) अत्यन्त युवा अर्थात् शरीर और आत्मा के बल से और (स्वधावान्) बहुत अन्न आदि से युक्त (आनुषक्) अनुकूल हुआ (विधते) विधान करते हुए (मर्त्याय) मरण धर्मवाले मनुष्य के लिये (अग्निः) बिजुली के समान वर्त्तमान (रत्नम्) रमण करने योग्य धन को (वि, दधाति) विधान करता है, वह सब लोगों से सत्कार करने योग्य है ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य सूर्य्य और बिजुली के सदृश राज्य और ऐश्वर्य्य की उन्नति करते हुए यश को विस्तारते हैं, वे सब से सब प्रकार सत्कार को प्राप्त होते हैं ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे राजप्रजाजना ! योऽग्निरिव क्षत्रियस्य बृहतो वाजस्य परमस्य राय ईशे यविष्ठः स्वधावानानुषग् विधते मर्त्यायाग्निरिव रत्नं विदधाति स सर्वैः सत्कर्त्तव्यः ॥३॥

Word-Meaning: - (अग्निः) पावक इव (ईशे) ईष्टे ऐश्वर्य्यं करोति (बृहतः) महतः (क्षत्रियस्य) क्षात्रधर्मयुक्तस्य (अग्निः) विद्युदिव वर्त्तमानः (वाजस्य) वेगस्य विज्ञानस्य वा (परमस्य) अत्युत्तमस्य (रायः) धनादेर्मध्ये (दधाति) (रत्नम्) रमणीयं धनम् (विधते) विधानं कुर्वते (यविष्ठः) अतिशयेन युवा शरीरात्मबलयुक्तः (वि) (आनुषक्) अनुकूलः (मर्त्याय) मरणधर्माय (स्वधावान्) बह्वन्नादियुक्तः ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः सूर्य्यवद्विद्युदिव राज्यैश्वर्य्यस्योन्नतिं कुर्वाणाः कीर्तिं प्रसारयन्ति ते सर्वतः सर्वथा सत्कारमाप्नुवन्ति ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे सूर्य व विद्युतप्रमाण्ेा राज्य व ऐश्वर्याची वाढ करतात व यश वाढवितात ती सर्वांकडून सर्व प्रकारे सत्कार करवून घेण्यास पात्र असतात. ॥ ३ ॥