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सखे॒ सखा॑यम॒भ्या व॑वृत्स्वा॒शुं न च॒क्रं रथ्ये॑व॒ रंह्या॒स्मभ्यं॑ दस्म॒ रंह्या॑। अग्ने॑ मृळी॒कं वरु॑णे॒ सचा॑ विदो म॒रुत्सु॑ वि॒श्वभा॑नुषु। तो॒काय॑ तु॒जे शु॑शुचान॒ शं कृ॑ध्य॒स्मभ्यं॑ दस्म॒ शं कृ॑धि ॥३॥

English Transliteration

sakhe sakhāyam abhy ā vavṛtsvāśuṁ na cakraṁ rathyeva raṁhyāsmabhyaṁ dasma raṁhyā | agne mṛḻīkaṁ varuṇe sacā vido marutsu viśvabhānuṣu | tokāya tuje śuśucāna śaṁ kṛdhy asmabhyaṁ dasma śaṁ kṛdhi ||

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Pad Path

सखे॑। सखा॑यम्। अ॒भि। आ। व॒वृ॒त्स्व॒। आ॒शुम्। न। च॒क्रम्। रथ्या॑ऽइव। रंह्या॑। अ॒स्मभ्य॑म्। द॒स्म॒। रंह्या॑। अग्ने॑। मृ॒ळी॒कम्। वरु॑णे। सचा॑। वि॒दः॒। म॒रुत्ऽसु॑। वि॒श्वऽभा॑नुषु। तो॒का॑य। तु॒जे। शु॒शु॒चा॒न॒। शम्। कृ॒धि॒। अ॒स्मभ्य॑म्। द॒स्म॒। शम्। कृ॒धि॒॥३॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:1» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:12» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उस ही विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सखे) मित्र ! (चक्रम्) पहिये के और (आशुम्) शीघ्र चलनेवाले घोड़े के (न) सदृश (सखायम्) स्नेही जन को (अभि, आ, ववृत्स्व) समीप वर्त्ताइये और (दस्म) हे दुःख के नाशकर्त्ता ! (रंह्या) प्राप्त होने योग्य (रथ्येव) वाहनों के निमित्त उत्तम स्थानों को जैसे, वैसे (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (रंह्या) प्राप्त होने योग्यों के सब प्रकार समीप प्राप्त होइये और (अग्ने) हे अग्नि के सदृश प्रकाशमान ! आप (सचा) सत्य के संयोग से (वरुणे) उपदेश देनेवाले के विषय में (मृळीकम्) सुखकर्त्ता को (विदः) प्राप्त होवें और (शुशुचान) हे पवित्र करनेवाले ! (विश्वभानुषु) सब में सूर्य के सदृश प्रकाश करनेवाले (मरुत्सु) मनुष्यों में (तुजे) विद्या और बल की इच्छा करनेवाले (तोकाय) पुत्रादि के लिये (शम्) सुख को (कृधि) करो और (दस्म) हे अविद्या के नाश करनेवाले ! आप (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (शम्) सुख (कृधि) करिये ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! आप लोग सब लोगों के साथ मित्र होकर जैसे घोड़े रथ को ले चलते हैं, वैसे मित्रों को उत्तम कर्म्मों में प्रवृत्त करो और श्रेष्ठमार्ग के सदृश हम लोगों को सरल मर्य्यादा में पहुँचाइये। जो लोग इस संसार में सूर्य्य के सदृश उत्तम गुणों से युक्त हुए सब के आत्माओं को प्रकाशित करके सुख को उत्पन्न करें, वे हम लोगों से सत्कार करने योग्य होवें ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे सखे ! चक्रमाशुं न सखायमभ्याववृत्स्व। हे दस्म ! रंह्या रथ्येवाऽस्मभ्यं रंह्याभ्याववृत्स्व। हे अग्ने ! त्वं सचा वरुणे मृळीकं विदः। हे शुशुचान ! विश्वभानुषु मरुत्सु तुजे तोकाय शं कृधि। हे दस्म ! त्वमस्मभ्यं शं कृधि ॥३॥

Word-Meaning: - (सखे) मित्र (सखायम्) सुहृदम् (अभि) (आ) (ववृत्स्व) आवर्त्तय (आशुम्) शीघ्रगामिनमश्वम् (न) इव (चक्रम्) (रथ्येव) रथेषु साधूनीव (रंह्या) गमनीयानि (अस्मभ्यम्) (दस्म) दुःखोपनाशक (रंह्या) गमनीयानि (अग्ने) वह्निरिव प्रकाशमान (मृळीकम्) सुखकरम् (वरुणे) (सचा) सत्यसंयोगेन (विदः) प्राप्नुयाः (मरुत्सु) मनुष्येषु (विश्वभानुषु) विश्वस्मिन् भानुषु भानुषु सूर्य्येष्विव प्रकाशकेषु (तोकाय) अपत्याय (तुजे) विद्याबलमिच्छुकाय (शुशुचान) पवित्रकारक (शम्) सुखम् (कृधि) (अस्मभ्यम्) (दस्म) अविद्यानाशक (शम्) सुखम् (कृधि) कुरु ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यूयं सर्वैः सह सखायो भूत्वाश्वा रथमिव सखीन्त्सत्कर्मसु सद्यः प्रवर्त्तयत। श्रेष्ठमार्ग इवाऽस्मान्त्सरले व्यवहारे गमय। येऽत्र जगति सूर्य्यवच्छुभगुणान्विताः सर्वात्मनः प्रकाश्य सुखं जनयेयुस्तेऽस्माभिः सत्कर्तव्याः स्युः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! तुम्ही सर्वांबरोबर मैत्री करून घोडे जसे रथाला नेतात तसे मित्रांना सत्कर्मात प्रवृत्त करा. श्रेष्ठ मार्गाप्रमाणे आम्हाला मर्यादा शिकवा. जे लोक या जगात सूर्याप्रमाणे उत्तम गुणयुक्त बनून सर्वांच्या आत्म्यांना प्रकाशित करतात व सुख उत्पन्न करतात ते सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ ३ ॥