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ते ग॑व्य॒ता मन॑सा दृ॒ध्रमु॒ब्धं गा ये॑मा॒नं परि॒ षन्त॒मद्रि॑म्। दृ॒ळ्हं नरो॒ वच॑सा॒ दैव्ये॑न व्र॒जं गोम॑न्तमु॒शिजो॒ वि व॑व्रुः ॥१५॥

English Transliteration

te gavyatā manasā dṛdhram ubdhaṁ gā yemānam pari ṣantam adrim | dṛḻhaṁ naro vacasā daivyena vrajaṁ gomantam uśijo vi vavruḥ ||

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Pad Path

ते। ग॒व्य॒ता। मन॑सा। दृ॒ध्रम्। उ॒ब्धम्। गाः। ये॒मा॒नम्। परि॑। सन्त॑म्। अद्रि॑म्। दृ॒ळ्हम्। नरः॑। वच॑सा। दैव्ये॑न। व्र॒जम्। गोऽम॑न्तम्। उ॒शिजः॑। वि। व॒व्रु॒रिति॑ वव्रुः॥१५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:1» Mantra:15 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:14» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:15


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो (नरः) वीरपुरुष (मनसः) मन से (गव्यता) गौओं के समूह के सदृश आचरण करनेवाले (दैव्येन) सुन्दर (वचसा) वचन से (गाः) किरणों को (दृध्रम्) बढ़ानेवाले (उब्धम्) सब ओर से मिले हुए (येमानम्) नियन्ता अर्थात् नायक (सन्तम्) वर्त्तमान (दृळ्हम्) सुख के बढ़ानेवाले को सूर्य (व्रजम्) चलनेवाले (गोमन्तम्) किरणें विद्यमान जिसमें ऐसे को (अद्रिम्) मेघ के सदृश (उशिजः) कामना करते हुए (परि, वि, वव्रुः) प्रकट करते हैं (ते) वे कामना को प्राप्त होते हैं ॥१५॥
Connotation: - जैसे किरणें मेघ को ऊपर को प्राप्त करती और वर्षाती हैं, वैसे ही विद्वान् जन विचार से दृढ़ ज्ञान को उत्पन्न करते हैं ॥१५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

ये नरो मनसा गव्यता दैव्येन वचसा गा दृध्रमुब्धं येमानं सन्तं दृळ्हं सूर्यो व्रजं गोमन्तमद्रिमिवोशिजः सन्तः परि वि वव्रुस्ते कामनां प्राप्नुवन्ति ॥१५॥

Word-Meaning: - (ते) (गव्यता) गोः प्रचुरो गव्यं तदाचरतीव तेन (मनसा) (दृध्रम्) वर्धकम् (उब्धम्) उन्दकम् (गाः) किरणान् (येमानम्) नियन्तारम् (परि) सर्वतः (सन्तम्) वर्त्तमानम् (अद्रिम्) मेघमिव (दृळ्हम्) सुखवर्धकम् (नरः) (वचसा) वचनेन (दैव्येन) दिव्येन (व्रजम्) यो व्रजति तम् (गोमन्तम्) गावः किरणा विद्यन्ते यस्मिंस्तम् (उशिजः) कामयमानाः (वि) (वव्रुः) विवृण्वति ॥१५॥
Connotation: - यथा किरणा मेघमुन्नयन्ति वर्षयन्ति तथैव विद्वांसो विचारेण दृढज्ञानं जनयन्ति ॥१५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जशी किरणे मेघांना वर्धित करून वृष्टी करवितात, तसेच विद्वान लोक विचार करून दृढ ज्ञान उत्पन्न करतात ॥ १५ ॥