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यान्वो॒ नरो॑ देव॒यन्तो॑ निमि॒म्युर्वन॑स्पते॒ स्वधि॑तिर्वा त॒तक्ष॑। ते दे॒वासः॒ स्वर॑वस्तस्थि॒वांसः॑ प्र॒जाव॑द॒स्मे दि॑धिषन्तु॒ रत्न॑म्॥

English Transliteration

yān vo naro devayanto nimimyur vanaspate svadhitir vā tatakṣa | te devāsaḥ svaravas tasthivāṁsaḥ prajāvad asme didhiṣantu ratnam ||

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Pad Path

यान्। वः॒। नरः॑। दे॒व॒ऽयन्तः॑। नि॒ऽमि॒म्युः। वन॑स्पते। स्वऽधि॑तिः। वा॒। त॒तक्ष॑। ते। दे॒वासः॑। स्वर॑वः। त॒स्थि॒ऽवांसः॑। प्र॒जाऽव॑त्। अ॒स्मे इति॑। दि॒धि॒ष॒न्तु॒। रत्न॑म्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:8» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:4» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को किनका ग्रहण वा त्याग करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (नरः) नायक लोगो ! (यान्, वः) जिन तुमको (देवयन्तः) कामना करते हुए जन (निमिम्युः) निरन्तर मान करें (ते) वे (स्वरवः) अपने विद्याबोधक शब्दों से युक्त (तस्थिवांसः) स्थिर बुद्धिवाले (देवासः) आप विद्वान् लोग (अस्मे) हमारे (प्रजावत्) प्रजावान् (रत्नम्) धन का (दिधिषन्तु) उपदेश करें। (वा) अथवा हे (वनस्पते) वनों के रक्षक पुरुष ! जैसे (स्वधितिः) वज्र मेघ को (ततक्ष) काटता है वैसे आप दुष्टता को काटो ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जिनके सङ्ग से अन्य जन सभ्य विद्वान् हों, उन्हीं का सङ्ग तुम लोग भी करो। जिनके समागम से दुर्व्यसन बढ़े, उनको सब लोग त्याग देवें ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैः के ग्राह्यास्त्याज्या वेत्याह।

Anvay:

हे नरो यान्वो देवयन्तो निमिम्युस्ते स्वरवस्तस्थिवांसो देवासो भवन्तोऽस्मे प्रजावद्रत्नं दिधिषन्तु। वा हे वनस्पते यथा स्वधितिर्मेघं ततक्ष तथा त्वं दुष्टतां तक्ष ॥६॥

Word-Meaning: - (यान्) (वः) युष्मान् (नरः) नायकाः (देवयन्तः) कामयमानाः (निमिम्युः) नितरां मिनुयुः (वनस्पते) वनानां पालक (स्वधितिः) वज्रः (वा) (ततक्ष) तक्षति (ते) (देवासः) विद्वांसः (स्वरवः) स्वकीयो रवो विद्याप्रज्ञापकः शब्दो येषान्ते (तस्थिवांसः) स्थिरप्रज्ञाः (प्रजावत्) प्रजा विद्यन्ते यस्मिँस्तत् (अस्मे) अस्मभ्यम् (दिधिषन्तु) उपदिशन्तु (रत्नम्) धनम्। रत्नमिति धनना०। निघं०२। १० ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या येषां सङ्गेनान्ये सभ्या विद्वांसः स्युस्तेषामेव सङ्गं यूयमपि कुरुत येषां समागमेन दुर्व्यसनानि वर्धेरँस्तान् सर्वे त्यजन्तु ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! ज्यांच्या संगतीने इतर लोक सभ्य, विद्वान होतात त्यांचीच संगती तुम्ही धरा. ज्यांच्या संगतीने दुर्व्यसन वाढतात त्यांचा सर्व लोकांनी त्याग करावा. ॥ ६ ॥