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अच्छा॑ विवक्मि॒ रोद॑सी सु॒मेके॒ ग्राव्णो॑ युजा॒नो अ॑ध्व॒रे म॑नी॒षा। इ॒मा उ॑ ते॒ मन॑वे॒ भूरि॑वारा ऊ॒र्ध्वा भ॑वन्ति दर्श॒ता यज॑त्राः॥

English Transliteration

acchā vivakmi rodasī sumeke grāvṇo yujāno adhvare manīṣā | imā u te manave bhūrivārā ūrdhvā bhavanti darśatā yajatrāḥ ||

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Pad Path

अच्छ॑। वि॒व॒क्मि॒। रोद॑सी॒ इति॑। सु॒मेके॒ इति॑ सु॒ऽमेके॑। ग्राव्णः॑। यु॒जा॒नः। अ॒ध्व॒रे। म॒नी॒षा। इ॒माः। ऊँ॒ इति॑। ते॒। मन॑वे। भूरि॑ऽवाराः। ऊ॒र्ध्वाः। भ॒व॒न्ति॒। द॒र्श॒ताः। यज॑त्राः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:57» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:2» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब स्त्रीपुरुषों के कृत्य का अगले मन्त्र में उपदेश करते हैं।

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! इस (अध्वरे) मेल करने योग्य व्यवहार में जो (इमाः) ये प्रजायें (मनीषा) बुद्धि के सहित वर्त्तमान (भूरिवाराः) अनेक प्रकार के सुख को प्राप्त होनेवाली (दर्शताः) देखने तथा (यजत्राः) मेल और सत्कार करने योग्य (ऊर्ध्वाः) उत्तम (भवन्ति) होती हैं उनको (युजानः) प्राप्त होते हुए आप लोग (ग्राव्णः) मेघ के सदृश संयोग से सुखी होते हैं और जो स्त्री पुरुष (सुमेके) उत्तम प्रकार एक हुए (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी के तुल्य (ते) आप (मनवे) मनुष्य के लिये वर्त्तमान हैं उन दोनों और उन आप लोगों के प्रति (उ) आश्चर्य के साथ मैं (अच्छ) उत्तम प्रकार (विवक्मि) विशेष करके उपदेश देता हूँ ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो स्त्री और पुरुष पृथिवी और सूर्य के सदृश संयुक्त हुए वर्त्तमान हैं, वे भाग्यशाली होते हैं। जो स्त्री और पुरुष उत्तम प्रकार परीक्षा करके स्वयंवर विवाह को करैं, वे मेघ के सदृश उत्तम सन्तानों को उत्पन्न करके सब काल में सुखी होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ स्त्रीपुरुषयोः कृत्यमाह।

Anvay:

हे विद्वांसोऽस्मिन्नध्वरे या इमा मनीषा सह वर्त्तमाना भूरिवारा दर्शता यजत्रा ऊर्ध्वा भवन्ति ता युजानो भवन्तो ग्राव्ण इव संयोगात्सुखिनो भवन्ति यौ स्त्रीपुरुषौ सुमेके रोदसी इव ते मनवे वर्त्तेते तौ तान् प्रत्यु अहमच्छ विवक्मि ॥४॥

Word-Meaning: - (अच्छ) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (विवक्मि) विशेषेणोपदिशामि (रोदसी) द्यावापृथिव्याविव (सुमेके) सुष्ठ्वेकीभूते (ग्राव्णः) मेघात् (युजानः) (अध्वरे) संगन्तव्ये व्यवहारे (मनीषा) प्रज्ञया (इमाः) प्रजाः (उ) आश्चर्य्ये (ते) तुभ्यम् (मनवे) मनुष्याय (भूरिवाराः) भूरि बहुविधं सुखं वृण्वन्ति (ऊर्ध्वाः) उत्कृष्टाः (भवन्ति) (दर्शताः) द्रष्टुं योग्याः (यजत्राः) संगन्तुं पूजितुमर्हाः ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यौ स्त्रीपुरुषौ भूमिसूर्य्याविव संयुक्तौ वर्त्तेते तौ भाग्यशालिनौ भवतः ये स्त्रीपुरुषाः सम्यक् परीक्ष्य स्वयंवरं विवाहं कुर्युस्ते मेघवदुत्तमान्यपत्यान्युत्पाद्य सर्वदा सुखिनो जायन्ते ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे स्त्री व पुरुष पृथ्वी व सूर्याप्रमाणे संयुक्त असतात ते भाग्यशाली असतात. जे स्त्री व पुरुष उत्तम प्रकारे परीक्षा करून स्वयंवर विवाह करतात ते मेघाप्रमाणे उत्तम संतान उत्पन्न करून सदैव सुखी होतात. ॥ ४ ॥