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उ॒तो हि वां॑ पू॒र्व्या आ॑विवि॒द्र ऋता॑वरी रोदसी सत्य॒वाचः॑। नर॑श्चिद्वां समि॒थे शूर॑सातौ ववन्दि॒रे पृ॑थिवि॒ वेवि॑दानाः॥

English Transliteration

uto hi vām pūrvyā āvividra ṛtāvarī rodasī satyavācaḥ | naraś cid vāṁ samithe śūrasātau vavandire pṛthivi vevidānāḥ ||

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Pad Path

उ॒तो इति॑। हि। वा॒म्। पू॒र्व्याः। आ॒ऽवि॒वि॒द्रे। ऋत॑वरी॒ इत्यृत॑ऽवरी। रो॒द॒सी॒ इति॑। स॒त्य॒ऽवाचः॑। नरः॑। चि॒त्। वा॒म्। स॒म्ऽइ॒थे। शूर॑ऽसातौ। व॒व॒न्दि॒रे। पृ॒थि॒वि॒। वेवि॑दानाः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:54» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:24» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (पृथिवि) भूमि के सदृश क्षमायुक्त राज्ञि ! जो (सत्यवाचः) यथार्थ वाणीवाले (वेविदानाः) अत्यन्त जानते हुए आपको (ववन्दिरे) प्रणाम करें और आप आपके स्वामी को (वाम्) आप दोनों (शूरसातौ) शूरवीर पुरुषों के विभाग और (समिथे) संग्राम में (नरः) अग्रणी पुरुषों के (चित्) सदृश प्रणाम करो और (उतो) भी (ऋतावरी) सत्य को प्राप्त करानेवाली स्त्री (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी के सदृश (पूर्व्याः) प्राचीन जनों में चतुर पुरुष आप दोनों को (हि) और (आ, विविद्रे) सब प्रकार प्राप्त होते हैं वह स्त्री और आप उनका और उसका सत्कार करो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वे ही लोग राज्य करने के योग्य हैं कि जो सत्य मानने, सत्य आचरण करने, सत्यवाणी बोलने और इन्द्रियों के जीतनेवाले विद्वान् जन होवें और वे ही रानी योग्य स्त्रियाँ हैं कि जो उक्त प्रकार के पति के सदृश होवें ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे पृथिविवद्वर्त्तमाने राज्ञि ! ये सत्यवाचो वेविदानास्त्वां ववन्दिरे त्वा तव पतिं च वां शूरसातौ समिथे नरश्चिदिव ववन्दिरे उतो ऋतावरी रोदसीव पूर्व्या वां ह्याविविद्रे सा त्वं तांस्तञ्च सत्कुरु ॥४॥

Word-Meaning: - (उतो) अपि (हि) (वाम्) युवाम् (पूर्व्याः) पूर्वेषु कुशलाः (आविविद्रे) समन्ताल्लभन्ते (ऋतावरी) सत्यप्रापिकोषा (रोदसी) द्यावापृथिव्याविव (सत्यवाचः) सत्या यथार्था वाग् येषान्ते (नरः) नायकाः (चित्) इव (वाम्) युवाम् (समिथे) सङ्ग्रामे (शूरसातौ) शूराणां विभागे (ववन्दिरे) आन्दन्तु (पृथिवि) भूमिवत्क्षमाशीले (वेविदानाः) भृशं प्रतिजानन्तः ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। त एव राज्यं कर्त्तुमर्हन्ति ये सत्यमानाः सत्याचाराः सत्यवाचो जितेन्द्रिया विद्वांसः स्युस्ता एव राज्ञो भवितुमर्हन्ति याः पतिसदृश्यः स्युः ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. तेच लोक राज्य करण्यायोग्य असतात जे सत्यमानी, सत्याचरणी, सत्यवाणी, जितेन्द्रिय व विद्वान असतात व त्याच स्त्रिया राणी बनण्यायोग्य असतात, ज्या वरील प्रकारच्या पतीसारख्या असतात. ॥ ४ ॥