Go To Mantra

तनू॒नपा॑दुच्यते॒ गर्भ॑ आसु॒रो नरा॒शंसो॑ भवति॒ यद्वि॒जाय॑ते। मा॒त॒रिश्वा॒ यदमि॑मीत मा॒तरि॒ वात॑स्य॒ सर्गो॑ अभव॒त्सरी॑मणि॥

English Transliteration

tanūnapād ucyate garbha āsuro narāśaṁso bhavati yad vijāyate | mātariśvā yad amimīta mātari vātasya sargo abhavat sarīmaṇi ||

Mantra Audio
Pad Path

तनू॒३॒॑ऽनपा॑त्। उ॒च्य॒ते॒। गर्भः॑। आ॒सु॒रः। नरा॒शंसः॑। भ॒व॒ति॒। यत्। वि॒ऽजाय॑ते। मा॒त॒रिश्वा॑। यत्। अमि॑मीत। मा॒तरि॑। वात॑स्य। सर्गः॑। अ॒भ॒व॒त्। सरी॑मणि॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:29» Mantra:11 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:34» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:11


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यत्) जो (तनूनपात्) सर्वत्र व्यापक (उच्यते) कहा जाता है (आसुरः) प्रकटरूप से रहित वायु से उत्पन्न (गर्भः) मध्य में वर्त्तमान (नराशंसः) मनुष्यों से प्रशंसित (भवति) होता है (मातरिश्वा) वायु में श्वास लेनेवाला (विजायते) विशेषभाव से उत्पन्न होता है और (यत्) जो (वातस्य) वायु सम्बन्धी (मातरि) आकाश में (सर्गः) उत्पत्ति (अमिमीत) रची जाती है (सरीमणि) गमनरूप व्यवहार में (अभवत्) होवे, वह अग्नि सम्पूर्ण जनों से जानने योग्य है ॥११॥
Connotation: - जो मनुष्य वायु और अग्नि से कार्य्यों को सिद्ध करते हैं, वे सुखों से संयुक्त होते हैं ॥११॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यद्यस्तनूनपादुच्यते आसुरो गर्भो नराशंसो भवति मातरिश्वा विजायते यद्यो वातस्य मातरि सर्गोऽमिमीत सरीमण्यभवत्सोऽग्निस्सर्वैर्वेदितव्यः ॥११॥

Word-Meaning: - (तनूनपात्) यस्य तनूर्व्याप्तिर्न पतति (उच्यते) (गर्भः) अन्तःस्थः (आसुरः) असुरे प्रकाशरूपरहिते वायौ भवः (नराशंसः) यं नरा आशंसन्ति (भवति) (यत्) यः (विजायते) विशेषेणोत्पद्यते (मातरिश्वा) यो वायौ श्वसिति स (यत्) यः (अमिमीत) निर्मीयते (मातरि) आकाशे (वातस्य) वायोः (सर्गः) उत्पत्तिः (अभवत्) भवेत् (सरीमणि) गमनाख्ये व्यवहारे ॥११॥
Connotation: - ये मनुष्या वाय्वग्नीभ्यां कार्य्याणि सृजन्ति ते सुखैः संसृष्टा भवन्ति ॥११॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जी माणसे वायू, अग्नीने कार्य सिद्ध करतात ती सुखयुक्त होतात. ॥ ११ ॥