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अ॒ग्निर्ने॒ता भग॑इव क्षिती॒नां दैवी॑नां दे॒व ऋ॑तु॒पा ऋ॒तावा॑। स वृ॑त्र॒हा स॒नयो॑ वि॒श्ववे॑दाः॒ पर्ष॒द्विश्वाति॑ दुरि॒ता गृ॒णन्त॑म्॥

English Transliteration

agnir netā bhaga iva kṣitīnāṁ daivīnāṁ deva ṛtupā ṛtāvā | sa vṛtrahā sanayo viśvavedāḥ parṣad viśvāti duritā gṛṇantam ||

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Pad Path

अ॒ग्निः। ने॒ता। भगः॑ऽइव। क्षि॒ती॒नाम्। दैवी॑नाम्। दे॒वः। ऋ॒तु॒ऽपाः। ऋ॒तऽवा॑। सः। वृ॒त्र॒ऽहा। स॒नयः॑। वि॒श्वऽवे॑दाः। पर्ष॑त्। विश्वा॑। अति॑। दुः॒ऽइ॒ता। गृ॒णन्त॑म्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:20» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:20» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर अग्नि के दृष्टान्त से विद्वान् का कर्त्तव्य कहते हैं।

Word-Meaning: - जो (भगइव) सूर्य्य के तुल्य (दैवीनाम्) श्रेष्ठ गुणों में उत्पन्न (क्षितीनाम्) भूमियों का (नेता) अग्रणी (ऋतुपाः) ऋतुओं के रक्षक (ऋतावा) सत्यकर्मनिर्वाहक (देवः) सुखदायक (वृत्रहा) मेघों के नाशक सूर्य्य के सदृश (सनयः) अनादिसिद्ध (विश्ववेदाः) संसार के ज्ञाता (अग्निः) अग्नि के सदृश तेजस्वी (गृणन्तम्) स्तुतिकारक को (विश्वा) सम्पूर्ण पुरुषों के (दुरिता) दुष्ट आचरणों को (अति) उल्लङ्घन करके (पर्षत्) पार पहुँचावे (सः) वह परमात्मा हम लोगों से सेवने योग्य है ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे अग्नि सूर्य्य आदिरूप धारण करके पृथिवी आदि पदार्थों को नियमपूर्वक अपने स्थान में स्थित रखता और जैसे जगदीश्वर सर्वदा संपूर्ण जगत् की व्यवस्था करता है, वैसे ही उपासित हुआ ईश्वर तथा सेवित हुआ विद्वान् पुरुष संपूर्ण पापाचरणों से पृथक् करके दुःखरूप समुद्र के पार पहुँचाता है ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनराग्निदृष्टान्तेन विद्वत्कर्त्तव्यमाह।

Anvay:

यो भग इव दैवीनां क्षितीनां नेता ऋतुपा ऋतावा देवो वृत्रहेव सनयो विश्ववेदा अग्निर्गृणन्तं विश्वा दुरितातिपर्षत्सोऽस्माभिस्सदैव सेवनीयः ॥४॥

Word-Meaning: - (अग्निः) पावकः (नेता) गमकः (भगइव) सूर्य्य इव (क्षितीनाम्) भूमीनाम् (दैवीनाम्) देवेषु दिव्यगुणेषु भवानाम् (देवः) सुखप्रदाता (ऋतुपाः) य ऋतुं पाति रक्षति सः (ऋतावा) य ऋतं संभजति (सः) (वृत्रहा) मेघस्य हन्ता सूर्य्य इव (सनयः) सनातनाः (विश्ववेदाः) यो विश्वं वेत्ति सः (पर्षत्) पारं प्रापयतु (विश्वा) सर्वाणि (अति) उल्लङ्घने (दुरिता) दुष्टाचरणानि (गृणन्तम्) स्तुवन्तम् ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथाग्निः सूर्य्यादिरूपेण पृथिव्यादीन्पदार्थान्नियमन्नयति यथा जगदीश्वरः सदा सर्वं जगद्व्यवस्थापयति तथैवोपासित ईश्वरः सेवितो विद्वान् सर्वेभ्यः पापाचरणेभ्यः पृथक्कृत्य दुःखार्णवात् पारं नयति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा अग्नी सूर्य इत्यादीचे रूप धारण करून पृथ्वी इत्यादी पदार्थांना नियमपूर्वक आपल्या स्थानी ठेवतो व जसा जगदीश्वर नेहमी संपूर्ण जगाची व्यवस्था करतो तशी उपासना केल्यामुळे जगदीश्वर व सेवा केलेला विद्वान पापाचरणापासून पृथक करून दुःखरूपी समुद्रापार पोचवितो. ॥ ४ ॥