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ईळे॑ च त्वा॒ यज॑मानो ह॒विर्भि॒रीळे॑ सखि॒त्वं सु॑म॒तिं निका॑मः। दे॒वैरवो॑ मिमीहि॒ सं ज॑रि॒त्रे रक्षा॑ च नो॒ दम्ये॑भि॒रनी॑कैः॥

English Transliteration

īḻe ca tvā yajamāno havirbhir īḻe sakhitvaṁ sumatiṁ nikāmaḥ | devair avo mimīhi saṁ jaritre rakṣā ca no damyebhir anīkaiḥ ||

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Pad Path

ईळे॑। च॒। त्वा॒। यज॑मानः। ह॒विःऽभिः॑। ईळे॑। स॒खि॒ऽत्वम्। सु॒ऽम॒तिम्। निऽका॑मः। दे॒वैः। अवः॑। मि॒मी॒हि॒। सम्। ज॒रि॒त्रे। रक्ष॑। च॒। नः॒। दम्ये॑ऽभिः। अनी॑कैः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:1» Mantra:15 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:15» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:15


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - (यजमानः) सब विद्या गुणों का संग करनेवाला मैं (देवैः) विद्वानों के साथ (च) और (हविर्भिः) ग्रहण करने योग्य साधनों से जिन (त्वा) आप विद्वानों की (सम् ईळे) सम्यक् स्तुति करता हूँ वा (निकामः) निश्चित कामनावाला होता हुआ (सखित्वम्) मित्रपन वा (सुमतिम्) सुन्दर बुद्धि की (ईळे) प्रशंसा करता हूँ वह आप (जरित्रे) स्तुति करनेवाले मेरे लिये (अवः) रक्षा आदि को (मिमीहि) उत्पन्न करो (दम्येभिः) दमन करने योग्य (अनीकैः) सेनाजनों के साथ (नः) हम लोगों की (च) भी (रक्ष) रक्षा करो ॥१५॥
Connotation: - मनुष्यों को प्रथम श्रेष्ठ अध्यापक ढूँढना चाहिये और फिर उससे समस्त विद्याओं को ढूँढना चाहिये तदनन्तर विचार पीछे साक्षात्कार अर्थात् प्रत्यक्ष करना उसके परे उपयोग करना चाहिये ॥१५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यजमानोऽहं देवैर्हविर्भिश्च यं त्वा विद्वांसं समीळे निकामः सन् सखित्वं सुमतिमीळे स त्वं जरित्रे मह्यमवो मिमीहि दम्येभिरनीकैर्नोऽस्माँश्च रक्ष ॥१५॥

Word-Meaning: - (ईळे) अध्येषयामि स्तौमि वा (च) (त्वा) त्वाम् (यजमानः) संगन्ता (हविर्भिः) आदातुमर्हैः साधनैः (ईळे) (सखित्वम्) सख्युर्भावम् (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (निकामः) निश्चितकामनः (देवैः) विद्वद्भिः सह (भवः) रक्षणादिकम् (मिमीहि) सम्पादय (सम्) (जरित्रे) स्तावकाय (रक्ष) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (च) (नः) अस्मान् (दम्येभिः) दातुं योग्यैः (अनीकैः) सैन्यैः ॥१५॥
Connotation: - मनुष्यैः प्रथमः श्रेष्ठोऽध्यापकोऽन्वेष्यस्तस्मात्सर्वेषाम्पदार्थानां विद्या अन्वेष्यास्ततो विचारः पुनः साक्षात्कारोऽतः परमुपयोगः कर्तव्यः ॥१५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी प्रथम श्रेष्ठ अध्यापक शोधला पाहिजे. नंतर सगळ्या विद्येत संशोधन केले पाहिजे. त्यानंतर चिंतन व नंतर साक्षात्कार अर्थात् प्रत्यक्ष व प्रत्यक्षानंतर कृती केली पाहिजे. ॥ १५ ॥