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स सं॑न॒यः स वि॑न॒यः पु॒रोहि॑तः॒ स सुष्टु॑तः॒ स यु॒धि ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑। चा॒क्ष्मो यद्वाजं॒ भर॑ते म॒ती धनादित्सूर्य॑स्तपति तप्य॒तुर्वृथा॑॥

English Transliteration

sa saṁnayaḥ sa vinayaḥ purohitaḥ sa suṣṭutaḥ sa yudhi brahmaṇas patiḥ | cākṣmo yad vājam bharate matī dhanād it sūryas tapati tapyatur vṛthā ||

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Pad Path

सः। स॒म्ऽन॒यः। सः। वि॒ऽन॒यः। पु॒रःऽहि॑तः। सः। सुऽस्तु॑तः। सः। यु॒धि। ब्रह्म॑णः। पतिः॑। चा॒क्ष्मः। यत्। वाज॑म्। भर॑ते। म॒ती। धना॑। आत्। इत्। सूर्यः॑। त॒प॒ति॒। त॒प्य॒तुः। वृथा॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:24» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:2» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राज पुरुष कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - (सः) वह (सन्नयः) सम्यक् नीतिवाला (सः) वह (विनयः) विविध प्रकार की नम्रतावाला (सः) वह (पुरोहितः) आगे जिसको विद्वान् लोग धारण करते (सः) वह (सुष्टुतः) अच्छे प्रकार प्रशंसित (चाक्ष्मः) स्पष्टवक्ता (सः) वही (ब्रह्मणः) धन का (पतिः) स्वामी (वृथा) निष्प्रयोजन दूसरों को पीड़ा देनेहारे दुष्टों को (तप्यतुः) दुःख देनेवाला विद्वान् वीर पुरुष (मती) विद्वान् से (धना) धनों और (यत्) जिस कारण (वाजम्) अन्नादि सामग्रीयुक्त पदार्थों का (आत्) निरन्तर (भरते) धारण पोषण करता है इससे (युधि) युद्ध में (सूर्य्यः) सूर्य के तुल्य (इत्) ही (तपति) प्रतापयुक्त होता है ॥९॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विनय आदि से युक्त प्रशंसित गुणकर्मस्वभाववाले दुष्टता के निरोधक और सत्यता के प्रवर्त्तक हैं, वे धर्मयुक्त व्यवहार से राज्य की रक्षा करने को समर्थ होते हैं ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजपुरुषाः कीदृशाः स्युरित्याह।

Anvay:

स सन्नयः स विनयः स पुरोहितः स सुष्टुतश्चाक्ष्मः स ब्रह्मणस्पतिर्वृथा वर्त्तमानानां तप्यतुर्मती युधि धना यद्वाजं चाद्भरते तस्य युधि सूर्य्य इवेत्तपति प्रतापयुक्तो भवति ॥९॥

Word-Meaning: - (सः) (सन्नयः) सम्यग्नयो नीतिर्यस्य सः (सः) (विनयः) विविधो नयो यस्य सः (पुरोहितः) पुर एनं विद्वांसो दधति सः (सः) (सुष्टुतः) सुष्ठु स्तुतः प्रशंसितः (सः) (युधि) युद्धे (ब्रह्मणः) धनस्य (पतिः) रक्षकः (चाक्ष्मः) व्यक्तवाक् (यतः) यतः (वाजम्) अन्नादिसामग्रीयुक्तं पदार्थसमूहम् (भरते) धरति (मती) मत्या विज्ञानेन (धना) धनानि (आत्) नैरन्तर्ये (इत्) एव (सूर्य्यः) सवितेव (तपति) (तप्यतुः) दुष्टानां परितापकः (वृथा) मिथ्यैव परपीडने वर्त्तमानानाम् ॥९॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विनयादियुक्ताः प्रशंसितगुणकर्मस्वभावा दुष्टतानिरोधकाः सत्यताप्रवर्त्तकाः सन्ति ते धर्म्येण राज्यं रक्षितुं शक्नुवन्ति ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विनयी, प्रशंसित गुण, कर्म, स्वभावाचे, दुष्टतानिरोधक व सत्यप्रवर्तक असतात ते धर्मयुक्त व्यवहाराने राज्याचे रक्षण करण्यास समर्थ असतात. ॥ ९ ॥