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अध्व॑र्यवो॒ यः श॒तं शम्ब॑रस्य॒ पुरो॑ बि॒भेदाश्म॑नेव पू॒र्वीः। यो व॒र्चिनः॑ श॒तमिन्द्रः॑ स॒हस्र॑म॒पाव॑प॒द्भर॑ता॒ सोम॑मस्मै॥

English Transliteration

adhvaryavo yaḥ śataṁ śambarasya puro bibhedāśmaneva pūrvīḥ | yo varcinaḥ śatam indraḥ sahasram apāvapad bharatā somam asmai ||

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Pad Path

अध्व॑र्यवः। यः। श॒तम्। शम्ब॑रस्य। पुरः॑। बि॒भेद॑। अश्म॑नाऽइव। पू॒र्वीः। यः। व॒र्चिनः॑। श॒तम्। इन्द्रः॑। स॒हस्र॑म्। अ॒पऽअव॑पत्। भर॑त॒। सोम॑म्। अ॒स्मै॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:14» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:13» Mantra:6 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अध्वर्यवः) युद्धरूप यज्ञ की सिद्धि करनेवालो तुम लोगों में से (यः) जो (शम्बरस्य) सुख जिससे स्वीकार किया जाता उस मेघ के (शतम्) सौ (पुरः) पुरों को जैसे घड़े को (अश्मनेव) पत्थर से वैसे (बिभेद) छिन्न भिन्न करता है (यः) जो (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् (वर्चिनः) प्रदीप्त अपने सर्व बस से देदीप्यमान राजा के (शतम्) सौ और (सहस्रम्) हजार (पूर्वीः) पहिले हुई प्रजाओं को (अपावपत्) नीचा करता है (अस्मै) इस सेनेश के लिये (सोमम्) ऐश्वर्य को (भरत) धारण करो ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो जैसे सूर्य वा बिजुली मेघ की असंख्य नगरियों को छिन्न-भिन्न करता है, पृथिवी पर अपरिमित जल वर्षाता है, वैसे जो प्रजा के लिये ऐश्वर्य का धारण करता है, उसका निरन्तर सत्कार करो ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अध्वर्यवो वो यूयं यः शम्बरस्य शतं पुरोघटमश्मनेव बिभेद य इन्द्रो वर्चिनः शतं सहस्रं च पूर्वीरपावपत्तद्वदस्मै सोमं भरत ॥६॥

Word-Meaning: - (अध्वर्यवः) युद्धयज्ञसिद्धिकराः (यः) (शतम्) (शम्बरस्य) शं सुखं वृणोति येन तस्य मेघस्य (पुरः) पुराणी (बिभेद) भिनत्ति (अश्मनेव) यथाऽश्मना घटं तथा (पूर्वीः) पूर्वं भूताः प्रजाः (यः) (वर्चिनः) प्रदीप्तस्य (शतम्) (इन्द्रः) (सहस्रम्) (अपावपत्) अधोवपति (भरत) धरत। अत्रान्येषामपीति दीर्घः (सोमम्) ऐश्वर्यम् (अस्मै) सेनेशाय ॥६॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यथा सूर्यो विद्युद्वा मेघस्यासंख्याः पुरीश्छिनत्ति पृथिव्यामपरिमितं जलं पातयति तथा यः प्रजार्थमैश्वर्यं धरति तं सततं सत्कुरुत ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसा सूर्य (विद्युत) मेघाच्या असंख्य नगरांना छिन्न भिन्न करतो, पृथ्वीवर अपरिमित जलाची वृष्टी करतो, तसे जो प्रजेसाठी ऐश्वर्य धारण करतो त्याचा निरंतर सत्कार करा. ॥ ६ ॥