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य ऋ॒तेन॒ सूर्य॒मारो॑हयन्दि॒व्यप्र॑थयन्पृथि॒वीं मा॒तरं॒ वि । सु॒प्र॒जा॒स्त्वम॑ङ्गिरसो वो अस्तु॒ प्रति॑ गृभ्णीत मान॒वं सु॑मेधसः ॥

English Transliteration

ya ṛtena sūryam ārohayan divy aprathayan pṛthivīm mātaraṁ vi | suprajāstvam aṅgiraso vo astu prati gṛbhṇīta mānavaṁ sumedhasaḥ ||

Pad Path

ये । ऋ॒तेन॑ । सूर्य॑म् । आ । अरो॑हयन् । दि॒वि । अप्र॑थयन् । पृ॒थि॒वीम् । मा॒तर॑म् । वि । सु॒प्र॒जाः॒ऽत्वम् । अ॒ङ्गि॒र॒सः॒ । वः॒ । अ॒स्तु॒ । प्रति॑ । गृ॒भ्णी॒त॒ । मा॒न॒वम् । सु॒ऽमे॒ध॒सः॒ ॥ १०.६२.३

Rigveda » Mandal:10» Sukta:62» Mantra:3 | Ashtak:8» Adhyay:2» Varga:1» Mantra:3 | Mandal:10» Anuvak:5» Mantra:3


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (ये ऋतेन दिवि, सूर्यम्-आरोहयन्) जो उस ज्ञान या उस तेज से सरणशील-प्रगतिमान् श्रोता या सूर्य को मोक्षधाम में या द्युलोक में ले जाते हैं-स्थापित करते हैं, भली-भाँति प्रकाशित करते हैं (मातरं पृथिवीं वि-अप्रथयन्) निर्मात्री निर्माण करनेवाली प्रथनशीला और विशिष्ट प्रसिद्ध या प्रकाशित श्रवणशील स्त्री को बनाते हैं-करते हैं। अङ्गिरसः-वः-सुप्रजास्त्वम्-अस्तु, हे विद्वानों ! या किरणों ! तुम्हारे लिए सुसन्तान भाव, सुशिष्यभाव सुख वनस्पतिभाव हों। आगे पूर्ववत् ॥३॥
Connotation: - विद्वानों के द्वारा प्राप्त ज्ञान से श्रोता मोक्ष को प्राप्त होता है और उसके यहाँ श्रवणशील स्त्री होने से वह उत्तम सन्तान, उत्तम शिष्य को प्राप्त करता है, होता है। एवं सूर्यकिरणें तेजोधर्म सूर्य को द्युलोक में चमकाती हैं और पृथिवी के प्रथनशील होने से उस पर उत्तम वनस्पतियाँ उत्पन्न होती हैं ॥३॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (ये-ऋतेन दिवि सूर्यम्-आरोहयन्) ये खलु तज्ज्ञानेन तत्तेजसा वा सरणशीलं प्रगतिमन्तं श्रोतारं सूर्यं वा मोक्षधाम्नि द्युलोके वा आरोहयन्ति नयन्ति-समन्तात् प्रकाशयन्ति वा (मातरं पृथिवीं वि-अप्रथयन्) निर्मात्रीं प्रथनशीलां “पृथिवीं व प्रथमानायै स्त्रियै” [ऋ० १।१८५।१ दयानन्दः] च विशिष्टतया प्रसिद्धां प्रकाशितां वा श्रोत्रीं स्त्रियं च कुर्वन्ति (अङ्गिरस-वः-सुप्रजास्त्वम्-अस्तु) हे विद्वांसः-किरणाः वा ! युष्मभ्यं सुसन्तानभावं सुशिष्यत्वं सुखवानस्पत्यादित्वं भवतु। अग्रे पूर्ववत् ॥३॥