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अप॒ प्राच॑ इन्द्र॒ विश्वाँ॑ अ॒मित्रा॒नपापा॑चो अभिभूते नुदस्व । अपोदी॑चो॒ अप॑ शूराध॒राच॑ उ॒रौ यथा॒ तव॒ शर्म॒न्मदे॑म ॥

English Transliteration

apa prāca indra viśvām̐ amitrān apāpāco abhibhūte nudasva | apodīco apa śūrādharāca urau yathā tava śarman madema ||

Pad Path

अप॑ । प्राचः॑ । इ॒न्द्र॒ । विश्वा॑न् । अ॒मित्रा॑न् । अप॑ । अपा॑चः । अ॒भि॒ऽभू॒ते॒ । नु॒द॒स्व॒ । अप॑ । उदी॑चः । अप॑ । शू॒र॒ । अ॒ध॒राचः॑ । उ॒रौ । यथा॑ । तव॑ । शर्म॑न् । मदे॑म ॥ १०.१३१.१

Rigveda » Mandal:10» Sukta:131» Mantra:1 | Ashtak:8» Adhyay:7» Varga:19» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:11» Mantra:1


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BRAHMAMUNI

इस सूक्त में परमात्मा की उपासना करना तथा संयम से रहना सुख का मूल है, राजा प्रजा का पालन करने का ध्यान रखे इत्यादि विषय हैं।

Word-Meaning: - (अभिभूते) हे अभिभव करनेवाले (शूर) शौर्यवन् (इन्द्र) परमात्मन् ! राजन् ! (प्राचः) सम्मुखवर्ती (विश्वान्) सब (अमित्रान्) शत्रुओं को (अप नुदस्व) दूर भगा-ताड़ित कर (अपाचः-अप) पृष्ठवर्ती सब शत्रुओं को भगा-ताड़ित कर (उदीचः-अप) उत्तरभागवर्ती सब शत्रुओं को भगा पीड़ित कर (अधराचः-अप) दक्षिणपार्श्ववर्ती सब शत्रुओं को भगा-ताड़ित कर (यथा) जिससे (तव) तेरे (उरौ शर्मन्) महान् सुखशरण में (भवेम) हम हो जावें ॥१॥
Connotation: - परमात्मा के सुखशरण में जो पहुँच जाता है, उसके समस्त ओर के शत्रुओं को परमात्मा दूर कर देता है एवं शासक राजा ऐसा होना चाहिए, जो प्रजाजनों को पीड़ित करनेवाले समस्त ओर के शत्रुओं को नष्ट कर सके या उसे नष्ट करना चाहिए ॥१॥
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BRAHMAMUNI

अत्र सूक्ते गृहस्थाश्रमे परमात्मोपासना कार्या संयमेन गृहस्थचर्या कार्येति सुखस्य मूलं ज्ञेयम्, राजा च प्रजाः पालयेत् सम्यग्ध्यानेनेत्येवमादयो विषयाः सन्ति।

Word-Meaning: - (अभिभूते-शूर-इन्द्र) हे अभिभवितः ‘अभिपूर्वाद् भू धातोः क्तिच् प्रत्ययश्छान्दसः शौर्यवन् परमात्मन् ! राजन् वा ! (प्राचः-विश्वान्-अमित्रान्-अप नुदस्व) सम्मुखवर्तिनः सर्वान् शत्रून्-अपगमय (अपाचः-अप) अपगतान् पृष्ठवर्त्तिनः शत्रून् अपगमय (उदीचः-अप) उत्तरभागगतान् शत्रून् अपगमय (अधराचः-अप) दक्षिणपार्श्वगतान् शत्रून्-अपगमय (यथा तव-उरौ शर्मन् भवेम) यथा हि तव महति सुखशरणे भवेम ॥१॥