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उ॒भे धुरौ॒ वह्नि॑रा॒पिब्द॑मानो॒ऽन्तर्योने॑व चरति द्वि॒जानि॑: । वन॒स्पतिं॒ वन॒ आस्था॑पयध्वं॒ नि षू द॑धिध्व॒मख॑नन्त॒ उत्स॑म् ॥

English Transliteration

ubhe dhurau vahnir āpibdamāno ntar yoneva carati dvijāniḥ | vanaspatiṁ vana āsthāpayadhvaṁ ni ṣū dadhidhvam akhananta utsam ||

Pad Path

उ॒भे इति॑ । धुरौ॑ । वह्निः॑ । आ॒ऽपिब्द॑मानः । अ॒न्तः । योना॑ऽइव । च॒र॒ति॒ । द्वि॒ऽजानिः॑ । वन॒स्पति॑म् । वने॑ । आ । अ॒स्था॒प॒य॒ध्व॒म् । नि । सु । द॒धि॒ध्व॒म् । अख॑नन्तः । उत्स॑म् ॥ १०.१०१.११

Rigveda » Mandal:10» Sukta:101» Mantra:11 | Ashtak:8» Adhyay:5» Varga:19» Mantra:5 | Mandal:10» Anuvak:9» Mantra:11


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (उभे धुरौ) दोनों संसार और मोक्ष के आनन्दरस को (आपिब्दमानः) भलीभाँति पिलानेवाला-प्राप्त करानेवाला (वह्निः) वहन करनेवाला परमात्मा (द्विजानि) दोनों संसार मोक्ष में प्रसिद्ध हुआ (योना-इव) हृदय के अन्दर (चरति) विचरता है-प्राप्त होता है (वनस्पतिम्) वननीय आत्मा के पालक परमात्मा को (वने) वननीय अपने आत्मा में (नि-सु-आ-अस्थापयध्वम्) नियमरूप से भलीभाँति धारण करो (उत्सम्-अखनन्तः) पुनः आनन्दरस को उद्घाटित करो ॥११॥
Connotation: - परमात्मा संसार और मोक्षधाम दोनों का अधिनायक स्वामी है, उसकी स्तुति प्रार्थना और उपासना करने से संसार का सच्चा सुख और मोक्ष का आनन्द प्राप्त होता है तथा अपने आत्मा का वननीय आश्रय है, हृदय में साक्षात् होनेवाला है ॥११॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (उभे धुरौ) उभौ संसारमोक्षानन्दरसौ (आपिब्दमानः) समन्तात् पिब्दमानः पाययमानः-प्रापयमाणः “पृषोदरादित्वादिष्टसिद्धिः” (वह्निः) वाहकः परमात्मा (द्विजानिः) द्वयोः संसारमोक्षयोः प्रसिद्धमानः (योना-इव) हृदयेऽन्तः-“इवोऽपि दृश्यते पदपूरणः” (चरति) विचरति (वनस्पतिं वने नि सु-आ-अस्थापयध्वम्) तं वननीयस्यात्मनः पतिं पालकं परमात्मानं वने वननीयं स्वात्मनि नियतं सुष्ठु धारयत (उत्सम्-अखनन्तः) ततः-आनन्दरसं खनन्तः-खनन्हेतोः ॥११॥