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त्रीणि॒ जाना॒ परि॑ भूषन्त्यस्य समु॒द्र एकं॑ दि॒व्येक॑म॒प्सु। पूर्वा॒मनु॒ प्र दिशं॒ पार्थि॑वानामृ॒तून्प्र॒शास॒द्वि द॑धावनु॒ष्ठु ॥

English Transliteration

trīṇi jānā pari bhūṣanty asya samudra ekaṁ divy ekam apsu | pūrvām anu pra diśam pārthivānām ṛtūn praśāsad vi dadhāv anuṣṭhu ||

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Pad Path

त्रीणि॑। जाना॑। परि॑। भू॒ष॒न्ति॒। अ॒स्य॒। स॒मु॒द्रे। एक॑म्। दि॒वि। एक॑म्। अ॒प्ऽसु। पूर्वा॑म्। अनु॑। प्र। दिश॑म्। पार्थि॑वानाम्। ऋ॒तून्। प्र॒ऽशास॑त्। वि। द॒धौ॒। अ॒नु॒ष्ठु ॥ १.९५.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:95» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:1» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह दिन और रात क्या करता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे गणितविद्या को जाननेवाले मनुष्यो ! जो दिन-रात (पूर्वाम्) पूर्व (प्र, दिशम्) प्रदेश जिसका कि मनुष्य उपदेश किया करते हैं उसको (अनुष्ठु) तथा उसके अनुकूल (पार्थिवानाम्) पृथिवी और अन्तरिक्ष में विदित हुए पदार्थों के बीच (ऋतून्) वसन्त आदि ऋतुओं को (प्रशासत्) प्रेरणा देता हुआ (अनु) तदनन्तर उनका (वि, दधौ) विधान करता है (अस्य) इस दिन-रात का (एकम्) एक पाँव (दिवि) सूर्य्य में, एक (समुद्रे) समुद्र में और (एकम्) एक (अप्सु) प्राण आदि पवनों में है तथा इस दिन-रात के अङ्ग (त्रीणि) अर्थात् भूत, भविष्यत् और वर्त्तमान के पृथग्भाव से उत्पन्न (जाना) मनुष्यों में हुए व्यवहारों को (परि, भूषन्ति) शोभित करते हैं, इन सबको जानो ॥ ३ ॥
Connotation: - दिन-रात आदि समय के अङ्गों के वर्त्ताव के विना भूत, भविष्यत् और वर्त्तमान कालों की संभावना भी नहीं हो सकती और न इनके विना किसी ऋतु के होने का सम्भव है। जो सूर्य्य और अन्तरिक्ष में ठहरे हुए पवन की गति से समय के अवयव अर्थात् दिनरात्रि आदि प्रसिद्ध हैं, उन सबको जान के सब मनुष्यों को चाहिये कि व्यवहारसिद्धि करें ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सोऽहोरात्रः किं करोतीत्युपदिश्यते।

Anvay:

हे गणितविद्याविदो मनुष्या योऽहोरात्रः पूर्वां प्रदिशमनुष्ठु पार्थिवानां मध्ये ऋतून् प्रशासदनु तान् विदधौ। अस्याऽहोरात्रस्यैकं चरणं दिव्येकं समुद्र एकं चाप्स्वस्ति तथास्यावयवास्त्रीणि जाना परिभूषन्त्येतानि यूयं विजानीत ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (त्रीणि) भूतभविष्यद्वर्त्तमानविभागजन्यकर्माणि (जाना) जनेषु भवानि। अत्रोत्सादेराकृतिगणात्वाद्भवार्थेऽञ् शेश्छन्दसि बहुलमिति शेर्लोपः। अत्र सायणाचार्येण पृषोदराद्याकृतिगणत्वादाद्युदात्तत्वं प्रतिपादितं तदशुद्धम् अनुत्सर्गापवादत्वात्। (परि) सर्वतः (भूषन्ति) अलं कुर्वन्ति (अस्य) अहोरात्रस्य (समुद्रे) (एकम्) (चरणम्) (दिवि) द्योतमाने सूर्ये (एकम्) चरणम् (अप्सु) प्राणेषु अप्सु वा (पूर्वाम्) प्राचीम् (अनु) आनुकूल्ये (प्र) (दिशम्) दिश्यते सर्वैर्जनैस्ताम् (पार्थिवानाम्) पृथिव्यामन्तरिक्षे विदितानाम् (ऋतून्) वसन्तादीन् (प्रशासत्) प्रशासनं कुर्वन् सन् (वि) (दधौ) विदधाति (अनुष्ठु) अनुतिष्ठन्ति यस्मिंस्तत् ॥ ३ ॥
Connotation: - नह्यहोरात्राद्यवयववर्त्तमानेन विना भूतभविष्यद्वर्त्तमानकालाः संभवितुं शक्याः। नैतैर्विना कस्यचिदृतोः सम्भवोऽस्ति। यः सूर्य्यान्तरिक्षस्थवायुगत्या कालावयवसमूहः प्रसिद्धोऽस्ति तं सर्वं विज्ञाय सर्वैर्मनुष्यैर्व्यवहारसिद्धिः कार्य्या ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - दिवस-रात्र इत्यादी वेळेच्या अंगांशिवाय भूत, भविष्य व वर्तमान काळाचे अनुमान काढता येत नाही. त्याशिवाय कोणताही ऋतू होऊ शकत नाही. सूर्य व अंतरिक्षात असलेल्या वायूच्या गतीने काळाचे अवयव अर्थात दिवस-रात्र इत्यादी प्रसिद्ध आहेत. त्या सर्वांना जाणून सर्व माणसांनी व्यवहारसिद्धी करावी. ॥ ३ ॥