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प्रैषा॒मज्मे॑षु विथु॒रेव॑ रेजते॒ भूमि॒र्यामे॑षु॒ यद्ध॑ यु॒ञ्जते॑ शु॒भे। ते क्री॒ळयो॒ धुन॑यो॒ भ्राज॑दृष्टयः स्व॒यं म॑हि॒त्वं प॑नयन्त॒ धूत॑यः ॥

English Transliteration

praiṣām ajmeṣu vithureva rejate bhūmir yāmeṣu yad dha yuñjate śubhe | te krīḻayo dhunayo bhrājadṛṣṭayaḥ svayam mahitvam panayanta dhūtayaḥ ||

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Pad Path

प्र। ए॒षा॒म्। अज्मे॑षु। वि॒थु॒राऽइ॑व। रे॒ज॒ते॒। भूमिः॑। यामे॑षु। यत्। ह॒। यु॒ञ्जते॑। शु॒भे। ते। क्री॒ळयः॒। धुन॑यः। भ्राज॑त्ऽऋष्टयः। स्व॒यम्। म॒हि॒ऽत्वम्। प॒न॒य॒न्त॒। धूत॑यः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:87» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:13» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे क्या करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - (यत्) जो (क्रीळयः) अपने सत्य चालचलन को वर्त्तते हुए (धुनयः) शत्रुओं को कंपावें (भ्राजदृष्टयः) ऐसे तीव्र शस्त्रोंवाले (धूतयः) जो कि युद्ध की क्रियाओं में विचरके वे वीर (शुभे) श्रेष्ठ विजय के लिये (अज्मेषु) संग्रामों में (प्र+युञ्जते) प्रयुक्त अर्थात् प्रेरणा को प्राप्त होते हैं (ते) वे (महित्वम्) बड़प्पन जैसे हो वैसे (स्वयम्) आप (ह) ही (पनयन्त) व्यवहारों को करते हैं (एषाम्) इनके (यामेषु) उन मार्गों में कि जिनमें मनुष्य आदि प्राणी जाते हैं, चलते हुए रथों से (भूमिः) धरती (विथुरा+इव+रेजते) ऐसे कम्पती है कि मानो शीतज्वर से पीड़ित लड़की कंपे ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे शीघ्र चलनेवाले पवन वृक्ष, तृण, ओषधि और धूलि को कंपाते हैं, वैसे वीरों की सेना के रथों के पहियों के प्रहार से धरती और उनके शस्त्रों की चोटों से डरनेहारे मनुष्य कंपा करते हैं और जैसे व्यापारवाले मनुष्य व्यवहार से धन को पाकर बड़े धनाढ्य होते हैं, वैसे ही सभा आदि कामों के अधीश शत्रुओं को जीतने से अपना बड़प्पन और प्रतिष्ठा विख्यात करते हैं ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते किं कुर्युरित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

यद्ये क्रीडयो धुनयो भ्राजदृष्टयो धूतयो वीराः शुभेऽज्मेषु प्रयुञ्जते ते महित्वं यथा स्यात्तथा स्वयं ह पनयन्त। एषां यामेषु गच्छद्भिर्यानादिर्भिूमिर्विथुरेव रेजते ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (प्र) (एषाम्) सभाध्यक्षादीनां रथाऽश्वहस्तिभृत्यादिशब्दैः (अज्मेषु) सङ्ग्रामेषु। अज्म इति सङ्ग्रामनाम। (निघं०२.१७) (विथुरेव) शीतज्वरव्यथितोद्विग्ना कन्येव (रेजते) कम्पते (भूमिः) (यामेषु) यान्ति येषु मार्गेषु तेषु (यत्) ये (ह) खलु (युञ्जते) (शुभे) शुभ्यते यस्तस्मै शुभाय विजयाय। अत्र कर्मणि क्विप्। (ते) (क्रीळयः) क्रीडन्तः (धुनयः) शत्रून् कम्पयन्तः (भ्राजदृष्टयः) प्रदीप्तायुधाः (स्वयम्) (महित्वम्) महिमानम् यथा स्यात्तथा (पनयन्त) पनं व्यवहारं कुर्वन्ति। अत्र बहुलं छन्दस्यमाङ्योगेऽपीत्यडभावः। अत्र तत्करोति तदाचष्ट इति णिच्। (धूतयः) धूयन्ते युद्धक्रियासु ये ते ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा शीघ्रं गच्छन्तो वायवो वृक्षतृणौषधिभूमिकणान् कम्पयन्ति, तथैव वीराणां सेनारथचक्रप्रहारैः पृथिवी शस्त्रप्रहारैर्भीरवश्च कम्पन्ते। यथा च व्यापारवन्तो व्यवहारेण धनं प्राप्य महान्तो धनाढ्या भवन्ति, तथैव सभाद्यध्यक्षादयः शत्रुर्विजेयन स्वमहत्त्वं प्रख्यापयन्ति ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे वेगवान वायू, वृक्ष, तृण, औषधी व धूळ यांना कंपित करतात. तसे वीरांच्या सेनेतील रथचक्राच्या प्रहाराने धरती कंपित होते व त्यांच्या शस्त्रांच्या प्रहाराने भयभीत माणसे कंपित होतात. जशी व्यापारी माणसे व्यवहाराद्वारे धन प्राप्त करून खूप श्रीमंत होतात तसेच सभाध्यक्ष शत्रूंना जिंकून स्वतःचे महत्त्व सिद्ध करतात. ॥ ३ ॥