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पू॒र्वाभि॒र्हि द॑दाशि॒म श॒रद्भि॑र्मरुतो व॒यम्। अवो॑भिश्चर्षणी॒नाम् ॥

English Transliteration

pūrvībhir hi dadāśima śaradbhir maruto vayam | avobhiś carṣaṇīnām ||

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Pad Path

पू॒र्वीभिः॑। हि। द॒दा॒शि॒म। श॒रत्ऽभिः॑। म॒रु॒तः॒। व॒यम्। अवः॑ऽभिः। च॒र्ष॒णी॒नाम् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:86» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:12» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

सब हम मिल के क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे (मरुतः) सभाध्यक्ष आदि सज्जनो ! जैसे तुम लोग (पूर्वीभिः) प्राचीन सनातन (शरद्भिः) सब ऋतु वा (अवोभिः) रक्षा आदि अच्छे-अच्छे व्यवहारों से (चर्षणीनाम्) सब मनुष्यों के सुख के लिये अच्छे प्रकार अपना वर्त्ताव वर्त्त रहे हो, वैसे (हि) निश्चय से (वयम्) हम प्रजा, सभा और पाठशालास्थ आदि प्रत्येक शाला के पुरुष आप लोगों को सुख (ददाशिम) देवें ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सब ऋतु में ठहरनेवाले वायु प्राणियों की रक्षा कर उनको सुख पहुँचाते हैं, वैसे ही विद्वान् लोग सबके सुख के लिये प्रवृत्त हों, न कि किसी के दुःख के लिये ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

सर्वे वयं मिलित्वा किं कुर्य्यामेत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मरुतो ! यथा यूयं पूर्वीभिः शरद्भिः सर्वैर्ऋतुभिरवोभिश्चर्षणीनां सुखाय प्रवर्त्तध्वम्। तथा वयमपि हि खलु युष्मदादिभ्यः सुखानि ददाशिम ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (पूर्वीभिः) पुरातनीभिः (हि) खलु (ददाशिम) दद्याम (शरद्भिः) शरदादिभिर्ऋतुभिः (मरुतः) सभाद्यध्यक्षादयः (वयम्) सभाप्रजाशालास्थाः (अवोभिः) रक्षणादिभिः (चर्षणीनाम्) मनुष्याणाम् ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा ऋतुस्था वायवः प्राणिनो रक्षित्वा सुखयन्ति तथा विद्वांसः सर्वेषां सुखाय प्रवर्त्तेरन्, न किल कस्यचिद् दुःखाय ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे सर्व ऋतूत स्थित असणारे वायू प्राण्यांचे रक्षण करून त्यांना सुख देतात तसेच विद्वान लोकांनी सर्वांच्या सुखासाठी प्रवृत्त व्हावे, कोणालाही दुःख देऊ नये. ॥ ६ ॥