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वि ते॒ वज्रा॑सो अस्थिरन्नव॒तिं ना॒व्या॒३॒॑अनु॑। म॒हत्त॑ इन्द्र वी॒र्यं॑ बा॒ह्वोस्ते॒ बलं॑ हि॒तमर्च॒न्ननु॑ स्व॒राज्य॑म् ॥

English Transliteration

vi te vajrāso asthiran navatiṁ nāvyā anu | mahat ta indra vīryam bāhvos te balaṁ hitam arcann anu svarājyam ||

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Pad Path

वि। ते॒। वज्रा॑सः। अ॒स्थि॒र॒न्। न॒व॒तिम्। ना॒व्याः॑। अनु॑। म॒हत्। ते॒। इ॒न्द्र॒। वी॒र्य॑म्। बा॒ह्वोः। ते॒। बल॑म्। हि॒तम्। अर्च॑न्। अनु॑। स्व॒ऽराज्य॑म् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:80» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:30» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भी अगले मन्त्र में पूर्वोक्त सभाध्यक्ष और सूर्य के गुणों का वर्णन किया है ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) ! जो (ते) तेरी (वज्रासः) शस्त्रास्त्रयुक्त दृढ़तर सेना (नवतिम्) नब्बे (नाव्याः) तारनेवाली नौकाओं को (अनुव्यस्थिरन्) अनुकूलता से व्यवस्थित करती है और जो (ते) तेरी (बाह्वोः) भुजाओं में (महत्) बड़ा (वीर्यम्) पराक्रम और (ते) तेरी भुजाओं में (बलम्) बस (हितम्) स्थित है, उससे (स्वराज्यम्) अपने राज्य का (अन्वर्चन्) यथावत् सत्कार करता हुआ राज्यलक्ष्मी को तू प्राप्त हो ॥ ८ ॥
Connotation: - जो विद्वान् राज्य के बढ़ाने की इच्छा करें, वे बड़ी अग्नियन्त्र से चलाने योग्य नौकाओं को बनाकर द्वीप-द्वीपान्तरों में जा-आ के व्यवहार से धन आदि के लाभों को बढ़ा के अपने राज्य को धन-धान्य से सुभूषित करें ॥ ८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरेतस्य गुणा उपदिश्यन्ते ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! सभापते ! ते वज्रासो नवतिं नाव्या अनु व्यस्थिरन्, यत् ते बाह्वोर्महद्वीर्यं बलं हितमस्ति, तेन स्वराज्यमन्वर्चन् राज्यश्रियं त्वं प्राप्नुहि ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (वि) विशेषार्थे (ते) तव (वज्रासः) शस्त्रकलाः समूहा (अस्थिरन्) तिष्ठन्ति (नवतिम्) एतत्संख्याकाः (नाव्याः) नौकाः (अनु) आनुकूल्ये (महत्) (ते) तव (इन्द्र) (वीर्य्यम्) (बाह्वोः) (ते) तव (बलम्) (हितम्) सुखकारि (अर्चन्) (अनु) (स्वराज्यम्) ॥ ८ ॥
Connotation: - ये राज्यं वर्धयितुमिच्छेयुस्ते बृहतीरग्न्यश्वतरीर्नौका निर्ममीरँस्ताभिर्द्वीपान्तरं गत्वाऽऽगत्य व्यवहारलाभान्नुन्नीय स्वराज्यं धनधान्यैरलंकुर्युः ॥ ८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे विद्वान राज्य वाढविण्याची इच्छा करतात. त्यांनी अग्नियंत्राने चालविण्यायोग्य नौका बनवून द्वीपद्वीपान्तरी जाणे-येणे करून धन इत्यादीमध्ये वृद्धी करावी व लाभान्वित व्हावे आणि आपले राज्य धनधान्यांनी समृद्ध करावे. सुशोभित करावे. ॥ ८ ॥