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ए॒वाग्निर्गोत॑मेभिर्ऋ॒तावा॒ विप्रे॑भिरस्तोष्ट जा॒तवे॑दाः। स ए॑षु द्यु॒म्नं पी॑पय॒त्स वाजं॒ स पु॒ष्टिं या॑ति॒ जोष॒मा चि॑कि॒त्वान् ॥

English Transliteration

evāgnir gotamebhir ṛtāvā viprebhir astoṣṭa jātavedāḥ | sa eṣu dyumnam pīpayat sa vājaṁ sa puṣṭiṁ yāti joṣam ā cikitvān ||

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Pad Path

ए॒व। अ॒ग्निः। गोत॑मेभिः। ऋ॒तऽवा॑। विप्रे॑भिः। अ॒स्तो॒ष्ट॒। जा॒तऽवे॑दाः। सः। ए॒षु॒। द्यु॒म्नम्। पी॒प॒य॒त्। सः। वाज॑म्। सः। पु॒ष्टिम्। या॒ति॒। जोष॑म्। आ। चि॒कि॒त्वान् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:77» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:25» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - (गोतमेभिः) अत्यन्त स्तुति करनेवाले (विप्रेभिः) बुद्धिमान् लोगों से जो (जातवेदाः) ज्ञान और प्राप्त होनेवाला (ऋतावा) सत्य हैं गुण, कर्म्म और स्वभाव जिसके (अग्निः) वह ईश्वर स्तुति किया जाता और (अस्तोष्ट) जिसको विद्वान् स्तुति करता है (एव) वही (एषु) इन धार्मिक विद्वानों में (चिकित्वान्) ज्ञानवाला (द्युम्नम्) विद्या के प्रकाश को प्राप्त होता है (सः) वह (वाजम्) उत्तम अन्नादि पदार्थों को (पीपयत्) प्राप्त कराता और (सः) वही (जोषम्) प्रसन्नता और (पुष्टिम्) धातुओं की समता को (आ याति) प्राप्त होता है ॥ ५ ॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि श्रेष्ठ धर्मात्मा विद्वानों के साथ उनकी सभा में रहकर उनसे विद्या और शिक्षा को प्राप्त होके सुखों का सेवन करे ॥ ५ ॥ इस सूक्त में ईश्वर, विद्वान् और अग्नि के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ संगति समझनी चाहिये ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! गोतमेभिर्विप्रेभिर्यो जातवेदा ऋतावा अग्निः स्तूयते यस्त्वमस्तोष्ट स एव चिकित्वान् द्युम्नं याति स वाजं पीपयत् स जोषं पुष्टिमायाति ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (एव) अवधारणार्थे (अग्निः) उक्तार्थे (गोतमेभिः) अतिशयेन स्तावकैः (ऋतावा) ऋतानि सत्यानि कर्माणि गुणा स्वभावो वा विद्यते यस्य सः (विप्रेभिः) मेधाविभिः (अस्तोष्ट) स्तौति (जातवेदाः) यो जातानि विन्दति वेत्ति वा सः (सः) (एषु) धार्मिकेषु विद्वत्सु (द्युम्नम्) विद्याप्रकाशम् (पीपयत्) प्रापयति (सः) (वाजम्) उत्तमान्नादिपदार्थसमूहम् (सः) (पुष्टिम्) धातुसाम्योपचयम् (याति) प्राप्नोति (जोषम्) प्रीतिं प्रसन्नताम् (आ) समन्तात् (चिकित्वान्) ज्ञानवान् ॥ ५ ॥
Connotation: - मनुष्यैर्धामिकैर्विद्वद्भिरार्य्यैः सह संवासं कृत्वैतेषां सभायां स्थित्वा विद्यासुशिक्षाः प्राप्य सुखानि सेवनीयानि ॥ ५ ॥ अत्रेश्वरविद्वदग्निगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी श्रेष्ठ धर्मात्मा विद्वानांबरोबर त्यांच्या सभेत राहून त्यांच्याकडून विद्या व शिक्षण प्राप्त करावे व सुख मिळवावे. ॥ ५ ॥