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बृ॒ह॒तीइ॑व सू॒नवे॒ रोद॑सी॒ गिरो॒ होता॑ मनु॒ष्यो॒३॒॑ न दक्षः॑। स्व॑र्वते स॒त्यशु॑ष्माय पू॒र्वीर्वै॑श्वान॒राय॒ नृत॑माय य॒ह्वीः ॥

English Transliteration

bṛhatī iva sūnave rodasī giro hotā manuṣyo na dakṣaḥ | svarvate satyaśuṣmāya pūrvīr vaiśvānarāya nṛtamāya yahvīḥ ||

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Pad Path

बृ॒ह॒तीइ॒वेति॑ बृह॒तीऽइ॑व। सू॒नवे॑। रोद॑सी॒ इति॑। गिरः॑। होता॑। म॒नु॒ष्यः॑। न। दक्षः॑। स्वः॑ऽवते। स॒त्यऽशु॑ष्माय। पू॒र्वीः। वै॒श्वा॒न॒राय॑। नृऽत॑माय। य॒ह्वीः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:59» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:25» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में पुरुषोत्तम के गुणों का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - जैसे (सूनवे) पुत्र के लिये (बृहतीइव) महागुणयुक्त माता वर्त्तती है, जैसे (रोदसी) प्रकाश भूमि और (दक्षः) चतुर (मनुष्यः) पढ़ानेहारे विद्वान् मनुष्य पिता के (न) समान (होता) देने-लेनेवाला विद्वान् ईश्वर वा सभापति विद्वान् में प्रसन्न होता है, जैसे विद्वान् लोग इस (स्वर्वते) प्रशंसनीय सुख वर्त्तमान (सत्यशुष्माय) सत्यबलयुक्त (नृतमाय) पुरुषों में उत्तम (वैश्वानराय) परमेश्वर के लिये (पूर्वीः) सनातन (यह्वीः) महागुण लक्षणयुक्त (गिरः) वेदवाणियों को (दधिरे) धारण करते हैं, वैसे ही परमेश्वर के उपासक सभाध्यक्ष में सब मनुष्यों को वर्त्तना चाहिये ॥ ४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे भूमि वा सूर्यप्रकाश सबको धारण करके सुखी करते हैं, जैसे पिता वा अध्यापक पुत्र के हित के लिये प्रवृत्त होता है, जैसे परमेश्वर प्रजासुख के वास्ते वर्तता है, वैसे सभापति प्रजा के अर्थ वर्ते, इस प्रकार सब देववाणियाँ प्रतिपादन करती हैं ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ नरोत्तमगुणा उपदिश्यन्ते ॥

Anvay:

यथा सूनवे बृहती इव रोदसी दक्षो मनुष्यः पिता न विद्वान् पुरुष इव होतेश्वरे सभाध्यक्षे वा प्रीतो भवति यथा विद्वांसोऽस्मै स्वर्वते सत्यशुष्माय नृतमाय वैश्वानराय पूर्वीर्यह्वीर्गिरो वेदवाणीर्दधिरे तथैव तस्मिन् सर्वैर्मनुष्यैर्वर्त्तिव्यम् ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (बृहतीइव) यथा महागुणयुक्ता पूज्या माता (सूनवे) पुत्राय (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (गिरः) वाणीः (होता) दाता ग्रहीता (मनुष्यः) मानवः (न) इव (दक्षः) चतुरः (स्वर्वते) प्रशस्तं स्वः सुखं वर्त्तते यस्मिँस्तस्मै (सत्यशुष्माय) सत्यं शुष्मं यस्य तस्मै (पूर्वीः) पुरातनीः (वैश्वानराय) परब्रह्मोपासकाय (नृतमाय) अतिशयेन ना तस्मै (यह्वीः) महतीः। यह्व इति महन्नामसु पठितम्। (निघं०३.३) अस्माद् बह्वादिभ्यश्चान्तर्गत्वात् ङीष् (अष्टा०४.१.४५) ॥ ४ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा भूमिसूर्यप्रकाशौ धृत्वा सुखयतो यथा पिताऽध्यापको वा पुत्रशिष्ययोर्हिताय प्रवर्त्तते, यथेश्वरः प्रजासुखाय प्रवर्तते, तथैव सभाध्यक्षः प्रयतेतेति सर्वा वेदवाण्यः प्रतिपादयन्ति ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे भूमी व सूर्यप्रकाश सर्वांना धारण करून सुखी करतात, पिता व अध्यापक पुत्राच्या हितासाठी प्रवृत्त होतात; परमेश्वर प्रजेच्या सुखासाठी वागतो; तसे सभापतीने प्रजेबरोबर वागावे. अशा प्रकारचे सर्व वेदवाणींचे प्रतिपादन आहे. ॥ ४ ॥