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सं यन्मदा॑य शु॒ष्मिण॑ ए॒ना ह्य॑स्यो॒दरे॑। स॒मु॒द्रो न व्यचो॑ द॒धे॥

English Transliteration

saṁ yan madāya śuṣmiṇa enā hy asyodare | samudro na vyaco dadhe ||

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Pad Path

सम्। यत्। मदा॑य। शु॒ष्मिणे॑। ए॒ना। हि। अ॒स्य॒। उ॒दरे॑। स॒मु॒द्रः। न। व्यचः॑। द॒धे॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:30» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:28» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह किस प्रकार का है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

Word-Meaning: - मैं (हि) अपने निश्चय से (मदाय) आनन्द और (शुष्मिणे) प्रशंसनीय बल और ऊर्जा जिस व्यवहार में हो, उसके लिये (समुद्रः) (न) जैसे समुद्र (व्यचः) अनेक व्यवहार (न) सैकड़ों हजार गुणों सहित (यत्) जो क्रिया हैं, उन क्रियाओं को (सन्दधे) अच्छे प्रकार धारण करूं॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे समुद्र के मध्य में अनेक गुण, रत्न और जीव-जन्तु और अगाध जल है, वैसे ही अग्नि और जल के सकाश से प्रयत्न के साथ बहुत प्रकार का उपकार लेना चाहिये॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते॥

Anvay:

अहं हि खलु मदाय शुष्मिणे समुद्रो व्यचो नो वाऽस्येन्द्राख्यस्याग्नेरुदर एना एनेन शतेन सहस्रेण च गुणैः सह वर्त्तमाना यत् याः क्रियाः सन्ति ताः सन्दधे॥३॥

Word-Meaning: - (सम्) सम्यगर्थे (यत्) याः (मदाय) हर्षाय (शुष्मिणे) शुष्मं प्रशस्तं बलं विद्यते यस्मिन् व्यवहारे तस्मै। शुष्ममिति बलनामसु पठितम्। (निघं०२.९) अत्र प्रशंसार्थ इनिः। (एना) एनेन शतेन सहस्रेण वा। अत्र सुपां सुलुग्० इत्याकारादेशः। (हि) खलु (अस्य) इन्द्राख्यस्याग्नेः (उदरे) मध्ये (समुद्रः) जलाधिकरणः (न) इव (व्यचः) विविधं जलादिवस्त्वञ्चन्ति ताः। अत्र व्युपपदादञ्चेः क्विन् ततो जस्। (दधे) धरेयम्॥३॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा समुद्रस्योदरेऽनेके गुणा रत्नानि सन्त्यगाधं जलं वास्ति तथैवाग्नेर्मध्येऽनेके गुणा अनेकाः क्रिया वसन्ति। तस्मान्मनुष्यैरग्निजलयोः सकाशात् प्रयत्नेन बहुविध उपकारो ग्रहीतुं शक्य इति॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे समुद्रात अनेक गुण असतात तसेच रत्ने, जीवजंतू आणि अगाध जल असते. अग्नीतही अनेक गुण व क्रिया असतात, त्यासाठी माणसांनी अग्नी व जलाच्या साह्याने प्रयत्नपूर्वक त्यांचा अनेक प्रकारे उपयोग करून घ्यावा. ॥ ३ ॥