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परा॒ हि मे॒ विम॑न्यवः॒ पत॑न्ति॒ वस्य॑इष्टये। वयो॒ न व॑स॒तीरुप॑॥

English Transliteration

parā hi me vimanyavaḥ patanti vasyaïṣṭaye | vayo na vasatīr upa ||

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Pad Path

परा॑। हि। मे॒। विऽम॑न्यवः। पत॑न्ति। वस्यः॑ऽइष्टये। वयः॑। न। व॒स॒तीः। उप॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:25» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:16» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भी उसी अर्थ को दृष्टान्त से अगले मन्त्र में सिद्ध किया है॥

Word-Meaning: - हे जगदीश्वर ! जैसे (वयः) पक्षी (वसतीः) अपने रहने के स्थानों को छोड़-छोड़ दूर देश को (उपपतन्ति) उड़ जाते हैं (न) वैसे (मे) मेरे निवास स्थान से (वस्यइष्टये) अत्यन्त धन होने के लिये (विमन्यवः) अनेक प्रकार के क्रोध करनेवाले दुष्ट जन (परापतन्ति) (हि) दूर ही चले जावें॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे उड़ाये हुए पक्षी दूर जाके बसते हैं, वैसे ही क्रोधी मुझ से दूर बसें और मैं भी उनसे दूर बसूँ, जिससे हमारा उलटा स्वभाव और धर्म की हानि कभी न होवे॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स एवार्थो दृष्टान्तेन साध्यते॥

Anvay:

हे जगदीश्वर ! त्वत्कृपया वयो वसतीर्विहाय दूरस्थानान्युपपतन्ति न इव। मे मम वासात् वस्यइष्टये विमन्यवः परा पतन्ति हि खलु दूरे गच्छन्तु॥४॥

Word-Meaning: - (परा) उपरिभावे। प्र परेत्येतस्य प्रातिलोम्यं प्राह। (निरु०१.३) (हि) खलु (मे) मम (विमन्यवः) विविधो मन्युर्येषां ते (पतन्ति) पतन्तु गच्छन्तु। अत्र लोडर्थे लट्। (वस्यइष्टये) वसीयत इष्टये सङ्गतये। अत्र वसुशब्दान्मतुप् ततोऽतिशय ईयसुनि। विन्मतोर्लुक्। (अष्टा०५.३.६५) इति मतोर्लुक्। टेः। (अष्टा०६.४.१५५) इति टेर्लोपस्ततश्छान्दसो वर्णलोपो वा इतीकारस्य लोपश्च। (वयः) पक्षिणः (न) इव (वसतीः) वसन्ति यासु ता विहाय (उप) सामीप्ये॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा ताडिताः पक्षिणो दूरं गत्वा वसन्ति, तथैव क्रोधयुक्ताः प्राणिनो मत्तो दूरे वसन्त्वहमपि तेभ्यो दूरे वसेयम्। यस्मादस्माकं स्वभावविपर्यासो धनहानिश्च कदाचिन्न स्यातामिति॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे उड्डाण केलेले पक्षी दूर जातात तसेच क्रोधी जीव माझ्यापासून दूर जावेत. मीही त्यांच्यापासून दूर जावे. ज्यामुळे आमचा स्वभाव विरोधी बनू नये व धनाची हानीही होऊ नये. ॥ ४ ॥