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आ ग्ना अ॑ग्न इ॒हाव॑से॒ होत्रां॑ यविष्ठ॒ भार॑तीम्। वरू॑त्रीं धि॒षणां॑ वह॥

English Transliteration

ā gnā agna ihāvase hotrāṁ yaviṣṭha bhāratīm | varūtrīṁ dhiṣaṇāṁ vaha ||

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Pad Path

आ। ग्नाः। अ॒ग्ने॒। इ॒ह। अव॑से। होत्रा॑म्। य॒वि॒ष्ठ॒। भार॑तीम्। वरू॑त्रीम्। धि॒षणा॑म्। व॒ह॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:22» Mantra:10 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:5» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

वे कौन-कौन देवपत्नी हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - हे (यविष्ठ) पदार्थों को मिलाने वा उनमें मिलनेवाले (अग्ने) क्रियाकुशल विद्वान् ! तू (इह) शिल्पकार्य्यों में (अवसे) प्रवेश करने के लिये (ग्नाः) पृथिवी आदि पदार्थ (होत्राम्) होम किये हुए पदार्थों को बहाने (भारतीम्) सूर्य्य की प्रभा (वरूत्रीम्) स्वीकार करने योग्य दिन रात्रि और (धिषणाम्) जिससे पदार्थों को ग्रहण करते हैं, उस वाणी को (आवह) प्राप्त हो॥१०॥
Connotation: - विद्वानों को इस संसार में मनुष्य जन्म पाकर वेद द्वारा सब विद्या प्रत्यक्ष करनी चाहिये, क्योंकि कोई भी विद्या पदार्थों के गुण और स्वभाव को प्रत्यक्ष किये विना सफल नहीं हो सकती॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

का का सा देवपत्नीत्युपदिश्यते।

Anvay:

हे यविष्ठाग्ने विद्वँस्त्वमिहावसे ग्ना होत्रां भारतीं वरूत्रीं धिषणामा वह समन्तात् प्राप्नुहि॥१०॥

Word-Meaning: - (आ) क्रियायोगे (ग्नाः) पृथिव्याः। ग्ना इत्युत्तरपदनामसु पठितम्। (निघं०३.१६) (अग्ने) पदार्थविद्यावेत्तर्विद्वन् (इह) शिल्पकार्य्येषु (अवसे) प्रवेशाय (होत्राम्) हुतद्रव्यगतिम् (यविष्ठ) यौति मिश्रयति विविनक्ति वा सोऽतिशयितस्तत्सम्बुद्धौ। (भारतीम्) यो ययाशुभैर्गुणैर्बिभर्त्ति पृथिव्यादिस्थान् प्राणिनः स भरतस्तस्येमां भाम्। भरत आदित्यस्तस्य भा इळा। (निरु०८.१३) (वरूत्रीम्) वरितुं स्वीकर्त्तुमर्हाम्। अहोरात्राणि वै वरूत्रयः। (श०ब्रा०६.४.२.६) (धिषणाम्) धृष्णोति कार्य्येषु यया तामग्नेर्ज्वालाप्रेरितां वाचम्। धिषणेति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) धृषेर्धिषच् संज्ञायाम्। (उणा०२.८०) इति क्युः प्रत्ययो धिषजादेशश्च। (वह) प्राप्नुहि। अत्र व्यत्ययो लडर्थे लोट् च॥१०॥
Connotation: - विद्वद्भिरस्मिन् संसारे मनुष्यजन्म प्राप्य वेदादिद्वारा सर्वा विद्याः प्रत्यक्षीकार्य्याः। नैव कस्यचिद् द्रव्यस्य गुणकर्मस्वभावानां प्रत्यक्षीकरणेन विना विद्या सफला भवतीति वेदितव्यम्॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विद्वानांनी या जगात मनुष्यजन्म प्राप्त करून वेदाद्वारे विद्येचे प्रत्यक्ष संप्रयोजन करावे. कारण कोणतीही क्रिया पदार्थांचे गुण व स्वभाव यांना प्रत्यक्ष केल्याखेरीज सफल होऊ शकत नाही. ॥ १० ॥