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नरा॒शंसं॑ सु॒धृष्ट॑म॒मप॑श्यं स॒प्रथ॑स्तमम्। दि॒वो न सद्म॑मखसम्॥

English Transliteration

narāśaṁsaṁ sudhṛṣṭamam apaśyaṁ saprathastamam | divo na sadmamakhasam ||

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Pad Path

नरा॒शंस॑म्। सु॒धृष्ट॑मम्। अप॑श्यम्। स॒प्रथः॑ऽतमम्। दि॒वः। न। सद्म॑ऽमखसम्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:18» Mantra:9 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:35» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - मैं (न) जैसे आकाशमय सूर्य्यादिकों के प्रकाश से (सद्ममखसम्) जिसमें प्राणी स्थिर होते और जिसमें जगत् प्राप्त होता है, (सप्रथस्तमम्) जो बड़े-बड़े आकाश आदि पदार्थों के साथ अच्छी प्रकार व्याप्त (सुधृष्टमम्) उत्तमता से सब संसार को धारण करने (नराशंसम्) सब मनुष्यों को अवश्य स्तुति करने योग्य पूर्वोक्त (सदसस्पतिम्) सभापति परमेश्वर को (अपश्यम्) ज्ञानदृष्टि से देखता हूँ, वैसे तुम भी सभाओं के पति को प्राप्त होके न्याय से सब प्रजा का पालन करके नित्य दर्शन करो॥९॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। इस मन्त्र में सातवें मन्त्र से सदसस्पतिम् इस पद की अनुवृत्ति जाननी चाहिये। जैसे मनुष्य सब जगह विस्तृत हुए सूर्य्यादि के प्रकाश को देखता है, वैसे ही सब जगह व्याप्त ज्ञान प्रकाशरूप परमेश्वर को जानकर सुख के विस्तार को प्राप्त होता है॥९॥पूर्व सत्रहवें सूक्त के अर्थ के साथ मित्र और वरुण के साथ अनुयोगी बृहस्पति आदि अर्थों के प्रतिपादन से इस अठारहवें सूक्त के अर्थ की सङ्गति जाननी चाहिये। यह भी सूक्त सायणाचार्य्य आदि और यूरोपदेशवासी विलसन आदि ने कुछ का कुछ ही वर्णन किया है॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते।

Anvay:

अहं सूर्य्यादिप्रकाशान् सद्ममखसमिव सप्रथस्तमं सुधृष्टमं नराशंसं सदसस्पतिं परमेश्वरमपश्यं पश्यामि तथैव यूयमपि कुरुत॥९॥

Word-Meaning: - (नराशंसम्) नरैरवश्यं स्तोतव्यस्तम्। नराशंसो यज्ञ इति कात्थक्यो नरा अस्मिन्नासीनाः शंसन्त्यग्निरिति शाकपूणिर्नरैः प्रशस्यो भवति। (निरु०८.६) (सुधृष्टमम्) सुष्ठु सकलं जगद्धारयति सोऽतिशयितस्तम् (अपश्यम्) पश्यामि। अत्र लडर्थे लङ्। (सप्रथस्तमम्) यः प्रथोभिर्विस्तृतैराकाशादिभिस्सहाभिव्याप्तो वर्त्तते सोऽतिशयितस्तम् (दिवः) सूर्य्यादिप्रकाशान् (न) इव (सद्ममखसम्) सीदन्ति यस्मिन् तत्सद्म जगत् तन्मखः प्राप्तं यस्मिन्निति॥९॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। अत्र सप्तममन्त्रात् ‘सदसस्पति’रिति पदमनुवर्तते। यथा मनुष्यः सर्वतो विस्तृतं सूर्य्यादिप्रकाशं पश्यति, तथैव सर्वतोऽभिव्याप्तं ज्ञानप्रकाशं परमेश्वरं ज्ञात्वा विस्तृतसुखो भवतीति॥९॥पूर्वेण सप्तदशसूक्तार्थेन मित्रावरुणाभ्यां सहानुयोगित्वादत्र बृहस्पत्याद्यर्थानां प्रतिपादनादष्टादशसूक्तार्थस्य सङ्गतिरस्तीति बोध्यम्। इदमपि सूक्तं सायणाचार्य्यादिभिर्यूरोपदेशनिवासिभिर्विलसनादिभिश्चान्यथैव व्याख्यातम्॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे माणूस सर्वत्र विस्तारलेल्या सूर्याचा प्रकाश पाहतो तसेच सर्व ठिकाणी व्याप्त असलेल्या ज्ञानप्रकाशरूपी परमेश्वराला जाणून अत्यंत सुख प्राप्त करतो. ॥ ९ ॥
Footnote: या मंत्रात सातव्या मंत्रातून ‘सदसदस्पतिम्’ या पदाची अनुवृत्ती जाणली पाहिजे. ॥ या सूक्ताचेही सायणाचार्य इत्यादी व युरोपदेशवासी विल्सन इत्यादींनी वेगळेच वर्णन केलेले आहे.