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पञ्चा॑रे च॒क्रे प॑रि॒वर्त॑माने॒ तस्मि॒न्ना त॑स्थु॒र्भुव॑नानि॒ विश्वा॑। तस्य॒ नाक्ष॑स्तप्यते॒ भूरि॑भारः स॒नादे॒व न शी॑र्यते॒ सना॑भिः ॥

English Transliteration

pañcāre cakre parivartamāne tasminn ā tasthur bhuvanāni viśvā | tasya nākṣas tapyate bhūribhāraḥ sanād eva na śīryate sanābhiḥ ||

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Pad Path

पञ्च॑ऽअरे। च॒क्रे। प॒रि॒ऽवर्त॑माने। तस्मि॑न्। आ। त॒स्थुः॒। भुव॑नानि। विश्वा॑। तस्य॑। न। अक्षः॑। त॒प्य॒ते॒। भूरि॑ऽभारः। स॒नात्। ए॒व। न। शी॒र्य॒ते॒। सऽना॑भिः ॥ १.१६४.१३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:164» Mantra:13 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:16» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! (पञ्चारे) जिसमें पाँच तत्त्व अरारूप हैं (परिवर्त्तमाने) और जो सब ओर से वर्त्तमान (तस्मिन्) उस (चक्रे) पहिये के समान ढुलकते हुए पञ्चतत्त्व के पञ्चीकरण में (विश्वा) समस्त (भुवनानि) लोक (आ, तस्थुः) अच्छे प्रकार स्थिर होते हैं (तस्य) उसका (अक्षः) अगला भाग अर्थात् जो उससे प्रथम ईश्वर है वह (न) नहीं (तप्यते) कष्ट को प्राप्त होता अर्थात् संसार के सुख-दुःख का अनुभव नहीं करता (सनाभिः) और जिसका समान बन्धन है अर्थात् क्रिया के साथ में लगा हुआ है और (भूरिभारः) जिनमें बहुत भार हैं बहुत कार्य कारण आरोपित हैं वह काल (सनात्) सनातनपन से (नैव) नहीं (शीर्यते) नष्ट होता ॥ १३ ॥
Connotation: - जैसे यह चक्ररूप कारण, काल, आकाश और दिशात्मक जगत् परमेश्वर में व्याप्त है, वैसे ही काल, आकाश और दिशाओं में कार्यकारणात्मक जगत् व्याप्य है ॥ १३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे विद्वांसः पञ्चारे परिवर्त्तमाने तस्मिञ्चक्रे विश्वा भुवनान्यातस्थुः। तस्याक्षो न तप्यते, सनाभिर्भूरिभारः कालः सनात् नैव शीर्यते ॥ १३ ॥

Word-Meaning: - (पञ्चारे) पञ्च तत्त्वानि अरा यस्मिँस्तस्मिन् (चक्रे) चक्रवद्गम्यमाने (परिवर्त्तमाने) (तस्मिन्) (आ) (तस्थुः) तिष्ठन्ति (भुवनानि) लोकाः (विश्वा) सर्वाणि (तस्य) (न) निषेधे (अक्षः) पुरो भागः (तप्यते) (भूरिभारः) भूरि बहुर्भारो यस्मिन् सः (सनात्) सनातने (एव) (न) (शीर्यते) हिंस्यते (सनाभिः) समाना नाभिर्बन्धनं यस्य सः ॥ १३ ॥
Connotation: - यथेदं चक्रं कारणकालाकाशदिगात्मकं जगत्परमेश्वरे व्याप्तं वर्त्तते तथैव कालाकाशदिक्षु कार्यकारणात्मकं जगद्व्याप्यमस्ति ॥ १३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे हे चक्ररूप कारण, काल, आकाश व दिशात्मक जग परमेश्वरात व्याप्त आहे तसेच काल, आकाश व दिशांमध्ये कार्यकारणात्मक जग व्याप्य आहे. ॥ १३ ॥