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उ॒रु॒व्यच॑सा म॒हिनी॑ अस॒श्चता॑ पि॒ता मा॒ता च॒ भुव॑नानि रक्षतः। सु॒धृष्ट॑मे वपु॒ष्ये॒३॒॑ न रोद॑सी पि॒ता यत्सी॑म॒भि रू॒पैरवा॑सयत् ॥

English Transliteration

uruvyacasā mahinī asaścatā pitā mātā ca bhuvanāni rakṣataḥ | sudhṛṣṭame vapuṣye na rodasī pitā yat sīm abhi rūpair avāsayat ||

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Pad Path

उ॒रु॒ऽव्यच॑सा। म॒हिनी॒ इति॑। अ॒स॒श्चता॑। पि॒ता। मा॒ता। च॒। भुव॑नानि। र॒क्ष॒तः॒। सु॒धृष्ट॑मे॒ इति॑ सु॒ऽधृष्ट॑मे। वपु॒ष्ये॒३॒॑ इति॑। न। रोद॑सी॒ इति॑। पि॒ता। यत्। सी॒म्। अ॒भि। रू॒पैः। अवा॑सयत् ॥ १.१६०.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:160» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:3» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (पिता) पालन करनेवाला विद्युदग्नि (यत्) जिन (रोदसी) सूर्य और भूमिमण्डल को (रूपैः) शुक्ल, कृष्ण, हरित, पीतादि रूपों से (सीम्) सब ओर से (अभ्यवासयत्) ढाँपता है उन (असश्चता) विलक्षण रूपवाले (महिनी) बड़े (उरुव्यचसा) बहुत व्याप्त होनेवाले (सुधृष्टमे) सुन्दर अत्यन्त उत्कर्षता से सहनेवाले (वपुष्ये) रूप में प्रसिद्ध हुए सूर्यमण्डल और भूमिमण्डलों के (न) समान (माता) मान्य करनेवाली स्त्री (पिता, च) और पालना करनेवाला जन (भुवनानि) जिनमें प्राणी होते हैं उन लोकों की (रक्षतः) रक्षा करते हैं ॥ २ ॥
Connotation: - जैसे समस्त प्राणियों को भूमि और सूर्यमण्डल पालते और धारण करते हैं, वैसे माता-पिता सन्तानों की पालना और रक्षा करते हैं। जो जलों और पृथिवी वा इनके विकारों में रूप दिखाई देता है, वह व्याप्त अग्नि ही का है, यह समझना चाहिये ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मनुष्या पिता यद्ये रोदसी रूपैः सीमभ्यवासयत्तेऽसश्चता महिनी उरुव्यचसा सुधृष्टमे वपुष्ये नेव माता पिता च भुवनानि रक्षतः ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (उरुव्यचसा) बहुव्यापिनौ (महिनी) महत्यौ (असश्चता) विलक्षणस्वरूपे (पिता) (माता) (च) (भुवनानि) भवन्ति भूतानि येषु तानि (रक्षतः) (सुधृष्टमे) सुष्ठु अतिशयेन प्रसोढ्यौ (वपुष्ये) वपुषि रूपे भवे (न) इव (रोदसी) द्यावापृथिवी (पिता) पालकोऽग्निर्विद्युद्वा (यत्) ये (सीम्) सर्वतः (अभि) आभिमुख्ये (रूपैः) शुक्लादिभिः (अवासयत्) आच्छादयति ॥ २ ॥
Connotation: - यथा सर्वाणि भूतानि भूमिसूर्यौ रक्षतो धरतश्च तथा मातापितरौ सन्तानान् पालयतो रक्षतश्च यदप्सु पृथिव्यामेतद्विकारेषु च रूपं दृश्यते तद्व्याप्तस्याऽग्नेरेवास्तीति वेदितव्यम् ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे भूमी व सूर्यमंडल संपूर्ण प्राण्यांचे पालन व धारण करतात तसे माता-पिता संतानांचे पालन व रक्षण करतात. जल व पृथ्वी यांच्या विकारांमध्ये जे रूप दिसून येते ते त्यात व्याप्त असलेल्या अग्नीचे आहे, हे समजले पाहिजे. ॥ २ ॥