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तन्न॑स्तु॒रीप॒मद्भु॑तं पु॒रु वारं॑ पु॒रु त्मना॑। त्वष्टा॒ पोषा॑य॒ वि ष्य॑तु रा॒ये नाभा॑ नो अस्म॒युः ॥

English Transliteration

tan nas turīpam adbhutam puru vāram puru tmanā | tvaṣṭā poṣāya vi ṣyatu rāye nābhā no asmayuḥ ||

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Pad Path

तत्। नः॒। तु॒रीप॑म्। अद्भु॑तम्। पु॒रु। वा॒। अर॑म्। त्मना॑। त्वष्टा॑। पोषा॑य। वि। स्य॒तु॒। रा॒ये। नाभा॑। नः॒। अ॒स्म॒ऽयुः ॥ १.१४२.१०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:142» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:11» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे विद्वान् ! (अस्मयुः) हम लोगों की कामना करनेवाले (त्वष्टा) विद्या और धर्म से प्रकाशमान आप (नः) हम लोगों के (पुरु) बहुत (पोषाय) पोषण करने के लिये और (राये) धन होने के लिये (नाभा) नाभि में प्राण के समान (वि, ष्यतु) प्राप्त होवें और (त्मना) आत्मा से जो (तुरीपम्) तुरन्त रक्षा करनेवाला (अद्भुतम्) अद्भुत आश्चर्य्यरूप (पुरु, वा, अरम्) बहुत वा पूरा धन है (तत्) उसको (नः) हम लोगों के लिये प्राप्त कीजिये (=कराइये) ॥ १० ॥
Connotation: - जो विद्वान् हम लोगों की कामना करे उसकी हम लोग भी कामना करें। जो हम लोगों की कामना न करे उसकी हम भी कामना न करें, इससे परस्पर विद्या और सुख की कामना करते हुए आचार्य्य और विद्यार्थी लोग विद्या की उन्नति करें ॥ १० ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे विद्वन् अस्मयुस्त्वष्टां भवान् नः पुरु पोषाय राये नाभा प्राणइव विष्यतु त्मना तुरीपमद्भुतं पुरु वारं धनमस्ति तन्न आवह ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (तत्) (नः) अस्मभ्यम् (तुरीपम्) तूर्णं रक्षकम् (अद्भुतम्) आश्चर्यस्वरूपम् (पुरु) बहु (वा) (अरम्) अलम् (पुरु) बहु (त्मना) आत्मना (त्वष्टा) विद्याधर्मेण राजमानः (पोषाय) पुष्टिकराय (वि) (स्यतु) प्राप्नोतु (राये) धनाय (नाभा) नाभौ (नः) अस्माकम् (अस्मयुः) अस्मान्कामयमानः ॥ १० ॥
Connotation: - यो विद्वानस्मान्कामयेत तं वयमपि कामयेमहि योस्मान्न कामयेत तं वयमपि न कामयेमहि तस्मात् परस्परस्य विद्यासुखे कामयमानावाचार्य्यविद्यार्थिनौ विद्योन्नतिं कुर्याताम् ॥ १० ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो विद्वान आमची कामना करतो त्याची आम्ही कामना करावी. जो आमची कामना करीत नाही त्याची आम्हीही कामना करू नये. त्यासाठी परस्पर विद्या व सुखाची कामना करीत आचार्य व विद्यार्थी यांनी विद्येची वाढ करावी. ॥ १० ॥