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विश्र॑यन्तामृता॒वृधो॒ द्वारो॑ दे॒वीर॑स॒श्चतः॑। अ॒द्या नू॒नं च॒ यष्ट॑वे॥

English Transliteration

vi śrayantām ṛtāvṛdho dvāro devīr asaścataḥ | adyā nūnaṁ ca yaṣṭave ||

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Pad Path

वि। श्र॒य॒न्ता॒म्। ऋ॒त॒ऽवृधः॑। द्वारः॑। दे॒वीः। अ॒स॒श्चतः॑। अ॒द्य। नू॒नम्। च॒। यष्ट॑वे॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:13» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:24» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:4» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में घर यज्ञशाला और विमान आदि रथ अनेक द्वारों के सहित बनाने चाहियें, इस विषय का उपदेश किया है-

Word-Meaning: - हे (मनीषिणः) बुद्धिमान् विद्वानो ! (अद्य) आज (यष्टवे) यज्ञ करने के लिये घर आदि के (असश्चतः) अलग-अलग (ऋतावृधः) सत्य सुख और जल के वृद्धि करनेवाले (देवीः) तथा प्रकाशित (द्वारः) दरवाजों का (नूनम्) निश्चय से (विश्रयन्ताम्) सेवन करो अर्थात् अच्छी रचना से उनको बनाओ॥६॥
Connotation: - मनुष्यों को अनेक प्रकार के द्वारों के घर, यज्ञशाला और विमान आदि यानों को बनाकर उनमें स्थिति होम और देशान्तरों में जाना-आना करना चाहिये॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ गृहं यज्ञशाला यानानि चानेकद्वाराणि रचनीयानीत्युपदिश्यते।

Anvay:

हे मनीषिणोऽद्य यष्टवे गृहादेरसश्चत ऋतावृधो देवीर्द्वारो नूनं विश्रयन्ताम्॥६॥

Word-Meaning: - (वि) विविधार्थे (श्रयन्ताम्) सेवन्ताम् (ऋतावृधः) या ऋतं सत्यं सुखं जलं वा वर्धयन्ति ताः। अत्र अन्येषामपि० इति दीर्घः। (द्वारः) द्वाराणि (देवीः) द्योतमानाः। अत्र वा च्छन्दसि इति जसः पूर्वसवर्णत्वम्। (असश्चतः) विभागं प्राप्ताः। अत्र सस्ज गतौ इत्यस्य व्यत्ययेन जकारस्य चकारः। (अद्य) अस्मिन्नहनि। अत्र निपातस्य च इति दीर्घः। (नूनम्) निश्चये (च) समुच्चये (यष्टवे) यष्टुम्। अत्र ‘यज’ धातोस्तवेन् प्रत्ययः॥६॥
Connotation: - मनुष्यैरनेकद्वाराणि गृहयज्ञशालायानानि रचयित्वा तत्र स्थितिं हवनं गमनागमने च कर्त्तव्ये॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी अनेक दरवाजे असलेली घरे, यज्ञशाळा व विमाने इत्यादी याने तयार करावीत. त्यात राहून होम करावा व देशदेशान्तरी भ्रमण करावे. ॥ ६ ॥