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आ वो॑ रुव॒ण्युमौ॑शि॒जो हु॒वध्यै॒ घोषे॑व॒ शंस॒मर्जु॑नस्य॒ नंशे॑। प्र व॑: पू॒ष्णे दा॒वन॒ आँ अच्छा॑ वोचेय व॒सुता॑तिम॒ग्नेः ॥

English Transliteration

ā vo ruvaṇyum auśijo huvadhyai ghoṣeva śaṁsam arjunasya naṁśe | pra vaḥ pūṣṇe dāvana ām̐ acchā voceya vasutātim agneḥ ||

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Pad Path

आ। वः॒। रु॒व॒ण्युम्। औ॒शि॒जः। हु॒वध्यै॑। घोषा॑ऽइव। शंस॑म्। अर्जु॑नस्य। नंशे॑। प्र। वः॒। पू॒ष्णे। दा॒वने॑। आ। अच्छ॑। वो॒चे॒य॒। व॒सुऽता॑तिम्। अ॒ग्नेः ॥ १.१२२.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:122» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:1» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:18» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! (औशिजः) विद्या की कामना करनेवाले का पुत्र मैं (वः) तुम लोगों के (रुवण्युम्) अच्छे कहे हुए उत्तम उपदेश के (आ, हुवध्यै) ग्रहण करने के लिये (अर्जुनस्य) रूप के (शंसम्) प्रशंसित व्यवहार को वा (घोषेव) विद्वानों की वाणी के समान दुःख के (नंशे) नाश और (वः) तुम लोगों की (पूष्णे) पुष्टि करने तथा (दावने) दूसरों को देने के लिये (अग्नेः) अग्नि के सकाश से जो (वसुतातिम्) धन उसको ही (प्र, आ, अच्छा, वोचेय) उत्तमता से भलीभाँति अच्छा कहूँ ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे वैद्यजन सबके लिये आरोग्यपन दे के रोगों को जल्दी दूर कराते, वैसे सब विद्यावान् सबको सुखी कर अच्छी प्रतिष्ठावाले करें ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे विद्वांस औशिजोऽहं वो रुवण्युमाहुवध्यै अर्जुनस्य शंसं घोषेव दुःखं नंशे वः पूष्णे दावनेऽग्नेर्वसुतातिं प्राच्छा वोचेय ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (आ) (वः) युष्माकम् (रुवण्युम्) सुशब्दायमानम् (औशिजः) विद्याकामस्य पुत्रः (हुवध्यै) होतुमादातुम् (घोषेव) आप्तानां वागिव (शंसम्) प्रशस्तम् (अर्जुनस्य) रूपस्य। अर्जुनमिति रूपना०। निघ० ३। ७। (नंशे) नाशनाय (प्र) (वः) (पूष्णे) पोषणाय (दावने) दात्रे (आ) (अच्छ) (वोचेय) (वसुतातिम्) धनमेव (अग्नेः) पावकान् ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा वैद्याः सर्वेभ्य आरोग्यं प्रदाय रोगान् सद्यो निवर्त्तयन्ति तथा सर्वे विद्यावन्तः सर्वान् सुखिनो विधाय सुप्रतिष्ठितान् कुर्वन्तु ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे वैद्य सर्वांना निरोगी करण्यासाठी रोग लवकर दूर करवितात तसे सर्व विद्यावंत लोकांनी सर्वांना सुखी करून चांगली प्रतिष्ठा प्राप्त करवून द्यावी. ॥ ५ ॥