Go To Mantra

नक्ष॒द्धव॑मरु॒णीः पू॒र्व्यं राट् तु॒रो वि॒शामङ्गि॑रसा॒मनु॒ द्यून्। तक्ष॒द्वज्रं॒ नियु॑तं त॒स्तम्भ॒द्द्यां चतु॑ष्पदे॒ नर्या॑य द्वि॒पादे॑ ॥

English Transliteration

nakṣad dhavam aruṇīḥ pūrvyaṁ rāṭ turo viśām aṅgirasām anu dyūn | takṣad vajraṁ niyutaṁ tastambhad dyāṁ catuṣpade naryāya dvipāde ||

Mantra Audio
Pad Path

नक्ष॑त्। हव॑म्। अ॒रु॒णीः। पू॒र्व्यम्। राट्। तु॒रः। वि॒शाम्। अङ्गि॑रसाम्। अनु॑। द्यून्। तक्ष॑त्। वज्र॑म्। निऽयु॑तम्। त॒स्तम्भ॑त्। द्याम्। चतुः॑ऽपदे। नर्या॑य। द्वि॒ऽपादे॑ ॥ १.१२१.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:121» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:24» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:18» Mantra:3


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजधर्म विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (तुरः) तुरन्त आलस्य छोड़े हुए विद्वान् मनुष्य (चतुष्पदे) गोआदि पशु वा (द्विपादे) मनुष्य आदि प्राणियों वा (नर्य्याय) मनुष्यों में अति उत्तम महात्माजन के लिये (अनु, द्यून्) प्रतिदिन (पूर्व्यम्) अगले विद्वानों ने अनुष्ठान किये हुए (हवम्) देने-लेने योग्य और (अरुणीः) प्रातः समय की वेला लाल रंगवाली उजेली के समान राजनीतियों को (नक्षत्) प्राप्त हो (नियुतम्) नित्य कार्य में युक्त किये हुए (वज्रम्) शस्त्र-अस्त्रों को (तक्षत्) तीक्ष्ण करके शत्रुओं को मारे तथा उनके (द्याम्) विद्या और न्याय के प्रकाश का (तस्तम्भत्) निबन्ध करे, वह (अङ्गिरसाम्) अङ्गों के रस अथवा प्राण के समान प्यारे (विशाम्) प्रजाजनों के बीच (राट्) प्रकाशमान राजा होता है ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य विनय आदि से मनुष्य आदि प्राणी और गौ आदि पशुओं को व्यतीत हुए आप्त, निष्कपट, सत्यवादी राजाओं के समान पालते और अन्याय से किसी को नहीं मारते हैं, वे ही सुखों को पाते हैं और नहीं ॥ ३ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजधर्मविषयमाह ।

Anvay:

यस्तुरो मनुष्यो विद्वान् चतुष्पदे द्विपादे नर्य्याय चानुद्यून् पूर्व्यं हवमुषसोदीप्तय इवारुणीश्च नक्षद् वियुतं वज्रं तक्षद् द्यां तस्तम्भत् सोऽङ्गिरसां विशां मध्ये राड् भवति ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (नक्षत्) प्राप्नुयात् (हवम्) दातुमादातुमर्हं न्यायम् (अरुणीः) उषसोऽरुण्यो दीप्तय इव वर्त्तमाना राजनीतीः (पूर्व्यम्) पूर्वैर्विद्वद्भिः कृतमनुष्ठितम् (राट्) राजते सः (तुरः) त्वरितोऽनलसः सन् (विशाम्) पालनीयानां प्रजानाम् (अङ्गिरसाम्) अङ्गानां रसप्राणवत् प्रियाणाम् (अनु) (द्यून्) दिनानि (तक्षत्) तीक्ष्णीकृत्य शत्रून् हिंस्यात् (वज्रम्) शस्त्रास्त्रसमूहम् (नियुतम्) नित्यं युक्तम् (तस्तम्भत्) स्तभ्नीयात् (द्याम्) विद्यान्यायप्रकाशम् (चतुष्पदे) गवाद्याय पशवे (नर्य्याय) नृषु साधवे (द्विपादे) मनुष्याद्याय ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या विनयादिभिर्मनुष्यादीन् गवादींश्चातीताप्तराजवद्रक्षन्त्यन्यायेन कंचिन्न हिंसन्ति त एव सुखानि प्राप्नुवन्ति नेतरे ॥ ३ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे विनयाने माणसे गाई इत्यादी पशूंचे, आप्त, निष्कपटी, सत्यवादी राजाप्रमाणे पालन करतात. अन्यायाने कुणाचे हनन करीत नाहीत तेच सुख प्राप्त करतात इतर नव्हे. ॥ ३ ॥