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दु॒ही॒यन्मि॒त्रधि॑तये यु॒वाकु॑ रा॒ये च॑ नो मिमी॒तं वाज॑वत्यै। इ॒षे च॑ नो मिमीतं धेनु॒मत्यै॑ ॥

English Transliteration

duhīyan mitradhitaye yuvāku rāye ca no mimītaṁ vājavatyai | iṣe ca no mimītaṁ dhenumatyai ||

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Pad Path

दु॒ही॒यन्। मि॒त्रऽधि॑तये। यु॒वाकु॑। रा॒ये। च॒। नः॒। मि॒मी॒तम्। वाज॑ऽवत्यै। इ॒षे। च॒। नः॒। मि॒मी॒त॒म्। धेनु॒ऽमत्यै॑ ॥ १.१२०.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:120» Mantra:9 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:23» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे सब विद्याओं में व्याप्त सभासेनाधीशो ! तुम दोनों जो गौयें (दुहीयन्) दूध आदि से पूर्ण करती हैं उनको (नः) हमारे (मित्रधितये) जिससे मित्रों की धारणा हो तथा (युवाकु) सुख से मेल वा दुःख से अलग होना हो उस (राये) धन के (च) और जीवने के लिये (मिमीतम्) मानो तथा (वाजवत्यै) जिसमें प्रशंसित ज्ञान वा (धेनुमत्यै) गौ का संबन्ध विद्यमान है उसके (च) और (इषे) इच्छा के लिये (नः) हमको (मिमीतम्) प्रेरणा देओ अर्थात् पहुँचाओ ॥ ९ ॥
Connotation: - जो गौ आदि पशु मित्रों की पालना, ज्ञान और धन के कारण हों उनको मनुष्य निरन्तर राखें और सबको पुरुषार्थ के लिये प्रवृत्त करें जिससे सुख का मेल और दुःख से अलग रहें ॥ ९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे अश्विनौ सभासेनाधीशौ युवां या गावो दुहीयँस्ता नोऽस्माकं मित्रधितये युवाकु राये च जीवनाय मिमीतम्। वाजवत्यै धेनुमत्या इषे च नोऽस्मान् मिमीतं प्रेरयतम् ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (दुहीयन्) या दुग्धादिभिः प्रपिपुरति। दुह धातोरौणादिक इः किच्च तस्मात् क्यजन्ताल्लेड्बहुवचनम्। (मित्रधितये) मित्राणां धितिर्धारणं यस्मात् तस्मै (युवाकु) सुखेन मिश्रिताय दुःखैः पृथग्भूताय वा। सुपां सुलुगिति विभक्तिलुक्। (राये) धनाय (च) (नः) अस्माकम् (मिमीतम्) मन्येथाम् (वाजवत्यै) वाजः प्रशस्तं ज्ञानं विद्यते यस्यां तस्यै (इषे) इच्छायै (च) (नः) अस्मान् (मिमीतम्) (धेनुमत्यै) गोः संबन्धिन्यै ॥ ९ ॥
Connotation: - ये गवादयः पशवो मित्रपालनज्ञानधननिमित्ता भवेयुस्तान् मनुष्याः सततं रक्षेयुः, सर्वान् पुरुषार्थाय प्रवर्त्तयेयुः, यतः सुखसंयोगो दुःखवियोजनं च स्यात् ॥ ९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - गाय इत्यादी पशूमित्रांचे पोषण, ज्ञान व धनाचे निमित्त असून त्यांचे माणसाने सतत रक्षण केले पाहिजे व सर्वांना पुरुषार्थात प्रवृत्त केले पाहिजे. ज्यामुळे सुखाचा मेळ व दुःखांपासून वेगळे राहता येईल. ॥ ९ ॥