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दे॒वैर्नो॑ दे॒व्यदि॑ति॒र्नि पा॑तु दे॒वस्त्रा॒ता त्रा॑यता॒मप्र॑युच्छन्। तन्नो॑ मि॒त्रो वरु॑णो मामहन्ता॒मदि॑ति॒: सिन्धु॑: पृथि॒वी उ॒त द्यौः ॥

English Transliteration

devair no devy aditir ni pātu devas trātā trāyatām aprayucchan | tan no mitro varuṇo māmahantām aditiḥ sindhuḥ pṛthivī uta dyauḥ ||

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Pad Path

दे॒वैः। नः॒। दे॒वी। अदि॑तिः। नि। पा॒तु॒। दे॒वः। त्रा॒ता। त्रा॒य॒ता॒म्। अप्र॑ऽयुच्छन्। तत्। नः॒। मि॒त्रः। वरु॑णः। म॒म॒ह॒न्ता॒म्। अदि॑तिः। सिन्धुः॑। पृ॒थि॒वी। उ॒त। द्यौः ॥ १.१०६.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:106» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:24» Mantra:7 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे हों, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (देवैः) विद्वानों वा दिव्यगुणों के साथ वर्त्तमान (अप्रयुच्छन्) प्रमाद न करता हुआ (त्राता) सबकी रक्षा करनेवाला (देवः) विद्वान् है वह (नः) हम लोगों की (नि, पातु) निरन्तर रक्षा करे तथा (देवी) दिव्य गुण भरी सब गुण अगरी (अदितिः) प्रकाशयुक्त विद्या सबकी (त्राताम्) रक्षा करें (तत्) उस पूर्वोक्त समस्त कर्म को (नः) और हम लोगों को (मित्रः) मित्रजन (वरुणः) श्रेष्ठ विद्वान् (अदितिः) अखण्डित नीति (सिन्धुः) समुद्र (पृथिवी) भूमि (उत) और (द्यौः) सूर्य्य का प्रकाश (मामहन्ताम्) बढ़ावें अर्थात् उन्नति देवें ॥ ७ ॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि जो अप्रमादी, विद्वानों में विद्वान्, विद्या की रक्षा करनेवाला विद्यादान से सबके सुख को बढ़ाता है, उसका सत्कार करके विद्या और धर्म का प्रचार संसार में करें ॥ ७ ॥इस सूक्त में समस्त विद्वानों के गुणों का वर्णन है। इससे इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह १०६ एकसौ छः वाँ सूक्त और चौबीसवाँ वर्ग पूरा हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते कीदृशा इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

यो देवैः सह वर्त्तमानोऽप्रयुच्छँस्त्राता देवो विद्वानस्ति स नो निपातु, या देव्यदितिः सर्वाँस्त्रायताम्। तन्नो मित्रो वरुणोऽदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौर्मामहन्ताम् ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (देवैः) विद्वद्भिर्दिव्यगुणैर्वा सह वर्त्तमानः (नः) अस्मान् (देवी) दिव्यगुणयुक्ता (अदितिः) प्रकाशमयी विद्या (नि) (पातु) (देवः) विद्वान् (त्राता) सर्वाभिरक्षकः (त्रायताम्) (अप्रयुच्छन्) अप्रमाद्यन् (तन्नो मित्रो०) इति पूर्ववत् ॥ ७ ॥
Connotation: - मनुष्यैर्योऽप्रमादी विद्वत्सु विद्वान् विद्यारक्षको विद्यादानेन सर्वेषां सुखवर्द्धकोऽस्ति तं सत्कृत्य विद्याधर्मौ जगति प्रसारणीयौ ॥ ७ ॥।अत्र विश्वेषां देवानां गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥इति षडुत्तरशततमं सूक्तं चतुर्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी जो प्रमाद न करणारा, विद्वानांमध्ये विद्वान, विद्येचे रक्षण करणारा, विद्यादानाने सर्वांचे सुख वाढविणारा असतो. त्याचा सत्कार करून जगात विद्या व धर्माचा प्रसार करावा. ॥ ७ ॥