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राज॑न्तमध्व॒राणां॑ गो॒पामृ॒तस्य॒ दीदि॑विम्। वर्ध॑मानं॒ स्वे दमे॑॥

English Transliteration

rājantam adhvarāṇāṁ gopām ṛtasya dīdivim | vardhamānaṁ sve dame ||

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Pad Path

राज॑न्तम्। अ॒ध्व॒राणा॑म्। गो॒पाम्। ऋ॒तस्य॑। दीदि॑विम्। वर्ध॑मानम्। स्वे। दमे॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:1» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:2» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:1» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भी वह परमेश्वर किस प्रकार का है, सो अगले मन्त्र में उपदेश किया है॥

Word-Meaning: - हम लोग (स्वे) अपने (दमे) उस परम आनन्द पद में कि जिसमें बड़े-बड़े दुःखों से छूट कर मोक्ष सुख को प्राप्त हुए पुरुष रमण करते हैं, (वर्धमानम्) सब से बड़ा (राजन्तम्) प्रकाशस्वरूप (अध्वराणाम्) पूर्वोक्त यज्ञादि अच्छे-अच्छे कर्म धार्मिक मनुष्यों के (गोपाम्) रक्षक (ऋतस्य) सत्यविद्यायुक्त चारों वेदों और कार्य जगत् के अनादि कारण के (दीदिविम्) प्रकाश करनेवाले परमेश्वर को उपासना योग से प्राप्त होते हैं॥८॥
Connotation: - विनाश और अज्ञान आदि दोषरहित परमात्मा अपने अन्तर्यामिरूप से सब जीवों को सत्य का उपदेश तथा श्रेष्ठ विद्वान् और सब जगत् की रक्षा करता हुआ अपनी सत्ता और परम आनन्द में प्रवृत्त हो रहा है। उस परमेश्वर के उपासक हम भी आनन्दित, वृद्धियुक्त विज्ञानवान् होकर विज्ञान में विहार करते हुए परम आनन्दरूप विशेष फलों को प्राप्त होते हैं॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृशोऽस्तीत्युपदिश्यते।

Anvay:

वयं स्वे दमे वर्धमानं राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविं परमेश्वरं नित्यमुपैमसि॥८॥

Word-Meaning: - (राजन्तम्) प्रकाशमानम् (अध्वराणाम्) पूर्वोक्तानां यज्ञानां धार्मिकाणां मनुष्याणां वा (गोपाम्) गाः पृथिव्यादीन् पाति रक्षति तम् (ऋतस्य) सत्यस्य सर्वविद्यायुक्तस्य वेदचतुष्टयस्य सनातनस्य जगत्कारणस्य वा। ऋतमिति सत्यनामसु पठितम्। (निघं०३.१०) ऋत इति पदनामसु च। (निघं०५.४) (दीदिविम्) सर्वप्रकाशकम्। दिवो द्वे दीर्घश्चाभ्यासस्य। (उणा०४.५५) अनेन क्विन्प्रत्ययः। (वर्धमानम्) ह्रासरहितम् (स्वे) स्वकीये (दमे) दाम्यन्त्युपशाम्यन्ति दुःखानि यस्मिंस्तस्मिन् परमानन्दे पदे। दमुधातोः हलश्च। (अष्टा०३.३.१२१) अनेनाधिकरणे घञ्प्रत्ययः॥८॥
Connotation: - परमात्मा स्वस्य सत्तायामानन्दे च क्षयाज्ञानरहितोऽन्तर्यामिरूपेण सर्वान् जीवान्सत्यमुपदिशन्नाप्तान् संसारं च रक्षन् सदैव वर्तते। एतस्योपासका वयमप्यानन्दिता वृद्धियुक्ता विज्ञानवन्तो भूत्वाऽभ्युदयनिःश्रेयसं प्राप्ताः सदैव वर्त्तामह इति॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे विनाश व अज्ञान इत्यादी दोषांनी रहित परमेश्वर आपल्या अंतर्यामी रूपाने सर्व जीवांना सत्याचा उपदेश करतो व श्रेष्ठ विद्वानाचे आणि जगाचे रक्षण करतो, परमेश्वर स्वतः अत्यंत आनंदमय असतो. तसेच परमेश्वराचे उपासकही आनंदित, वर्धित होऊन विज्ञानवंत बनून परम आनंदरूपी विशेष फळ प्राप्त करतात. ॥ ८ ॥