वांछित मन्त्र चुनें

चतु॑स्त्रिꣳश॒त् तन्त॑वो॒ ये वि॑तत्नि॒रे य इ॒मं य॒ज्ञ स्व॒धया॒ दद॑न्ते। तेषां॑ छि॒न्नꣳ सम्वे॒तद्द॑धामि॒ स्वाहा॑ घ॒र्मोऽअप्ये॑तु दे॒वान् ॥६१॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

चतु॑स्त्रिꣳश॒दिति॒ चतुः॑ऽत्रिꣳशत्। तन्त॑वः। ये। वि॒त॒त्नि॒र इति॑ विऽतत्नि॒रे। ये। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। स्व॒धया॑। दद॑न्ते। तेषा॑म्। छि॒न्नम्। सम्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। ए॒तत्। द॒धा॒मि॒। स्वाहा॑। घ॒र्मः। अपि॑। ए॒तु॒। दे॒वान् ॥६१॥

यजुर्वेद » अध्याय:8» मन्त्र:61


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

इस जगत् की उत्पत्ति में कितने कारण हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (चतुस्त्रिंशत्) आठों वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, इन्द्र, प्रजापति और प्रकृति (तन्तवः) सूत के समान (यज्ञम्) सुख उत्पन्न करनेहारे यज्ञ को (वितत्निरे) विस्तार करते हैं, अथवा (ये) जो (स्वधया) अन्न आदि उत्तम पदार्थों से (इमम्) इस यज्ञ को (ददन्ते) देते हैं (तेषाम्) उनका जो (छिन्नम्) अलग किया हुआ यज्ञ (एतत्) उस को (स्वाहा) सत्य क्रिया वा सत्य वाणी से (सम्) (दधामि) इकट्ठा करता हूँ (उ) और वही (घर्म्मः) यज्ञ (देवान्) विद्वानों को (अपि) निश्चय से (एतु) प्राप्त हो ॥६१॥
भावार्थभाषाः - इस प्रत्यक्ष चराचर जगत् के चौंतीस तत्त्व कारण हैं, उनके गुण और दोषों को जो जानते हैं, उन्हीं को सुख मिलता है ॥६१॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अस्य जगत उत्पत्तौ कति कारणानि सन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(चतुस्त्रिंशत्) अष्टौ वसव एकादश रुद्रा द्वादशादित्या इन्द्रः प्रजापतिः प्रकृतिश्चेति (तन्तवः) सूत्रवत् समवेतुं शीलाः (ये) (वितत्निरे) (ये) (इमम्) (यज्ञम्) सौख्यजनकम् (स्वधया) अन्नादिना (ददन्ते) (तेषाम्) (छिन्नम्) द्वैधीकृतम् (सम्) (उ) वितर्के (एतत्) (दधामि) (स्वाहा) सत्यया क्रियया वाचा वा (घर्म्मः) यज्ञः, घर्म्म इति यज्ञनामसु पठितम्। (निघं०३.१७) (अपि) निश्चये (एतु) (देवान्) विदुषः। अयं मन्त्रः (शत०१२.६.१.३७) व्याख्यातः ॥६१॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये चतुस्त्रिंशत् तन्तवो यज्ञं वितत्निरे, ये च स्वधयेमं ददन्ते, तेषां छिन्नं यद् द्वैधीकृतं तदेतत् स्वाहा सन्दधामि उ इति वितर्के घर्म्मो देवानप्येतु ॥६१॥
भावार्थभाषाः - अस्य प्रत्यक्षस्य जगतश्चतुस्त्रिंशत् तत्त्वानि कारणानि सन्ति, तेषां गुणदोषान् ये जानन्ति, तानेव सुखमेति ॥६१॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे चराचर जग ३४ कारण तत्त्वांपासून बनलेले आहे. जी माणसे त्यांचे गुणदोष जाणतात. त्यांनाच सुख प्राप्त होते.