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इडे॒ रन्ते॒ हव्ये॒ काम्ये॒ चन्द्रे॒ ज्योतेऽदि॑ते॒ सर॑स्वति॒ महि॒ विश्रु॑ति। ए॒ता ते॑ऽअघ्न्ये॒ नामा॑नि दे॒वेभ्यो॑ मा सु॒कृतं॑ ब्रूतात् ॥४३॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इडे॑। रन्ते॑। हव्ये॑। काम्ये॑। चन्द्रे॑। ज्योते॑। अदि॑ते। सर॑स्वति। महि॑। विश्रु॒तीति॒ विऽश्रु॑ति। ए॒ता। ते॒। अ॒घ्न्ये॒। नामा॑नि। दे॒वेभ्यः॑। मा॒। सु॒कृत॒मिति॒ सु॒ऽकृ॑तम्। ब्रू॒ता॒त् ॥४३॥

यजुर्वेद » अध्याय:8» मन्त्र:43


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी प्रकारान्तर से उसी विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अघ्न्ये) ताड़ना न देने योग्य (अदिते) आत्मा से विनाश को प्राप्त न होनेवाली (ज्योते) श्रेष्ठ शील से प्रकाशमान (इडे) प्रशंसनीय गुणयुक्त (हव्ये) स्वीकार करने योग्य (काम्ये) मनोहर स्वरूप (रन्ते) रमण करने योग्य (चन्द्रे) अत्यन्त आनन्द देनेवाली (विश्रुति) अनेक अच्छी बातें और वेद जाननेवाली (महि) अत्यन्त प्रशंसा करने योग्य (सरस्वति) प्रशंसित विज्ञानवाली पत्नी ! उक्त गुण प्रकाश करनेवाले (ते) तेरे (एता) ये (नामानि) नाम हैं, तू (देवेभ्यः) उत्तम गुणों के लिये (मा) मुझ को (सुकृतम्) उत्तम उपदेश (ब्रूतात्) किया कर ॥४३॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वानों से शिक्षा पाई हुई स्त्री हो, वह अपने-अपने पति और अन्य सब स्त्रियों को यथायोग्य उत्तम कर्म्म सिखलावें, जिससे किसी तरह वे अधर्म्म की ओर न डिगें। वे दोनों स्त्री-पुरुष विद्या की वृद्धि और बालकों तथा कन्याओं को शिक्षा किया करें ॥४३॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः प्रकारान्तरेण तदेवाह ॥

अन्वय:

(इडे) स्तोतुमर्हे (रन्ते) रमणीये (हव्ये) स्वीकर्तुमर्हे (काम्ये) कमनीये (चन्द्रे) आह्लादकारके (ज्योते) सुशीलेन द्योतमाने (अदिते) आत्मस्वरूपेणाविनाशिनि (सरस्वति) प्रशस्तं सरो विज्ञानं विद्यते यस्यास्तत्सम्बुद्धौ (महि) पूज्यतमे (विश्रुति) विविधाः श्रुतयः श्रवणानि तद्वति (एता) एतानि (ते) तव (अघ्न्ये) हन्तुं तिरस्कर्तुमयोग्ये (नामानि) गौणिक्य आख्याः (देवेभ्यः) दिव्यगुणेभ्यो दिव्यगुणयुक्तपतिभ्यः (मा) माम् (सुकृतम्) सुष्ठु कर्त्तव्यं कर्म (ब्रूतात्) ब्रूहि। अयं मन्त्रः (शत०४.५.८.१०) व्याख्यातः ॥४३॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अघ्न्येऽदिते ज्योते इडे हव्ये काम्ये रन्ते चन्द्रे विश्रुति महि सरस्वति पत्नि ! त एता नामानि सन्ति, त्वं देवेभ्यो मा सुकृतं ब्रूतात् ॥४३॥
भावार्थभाषाः - या विद्वद्भ्यः शिक्षां प्राप्तवती विदुषी स्त्री सा यथोक्तया शिक्षया शिक्षेत्। यतस्सर्वा अधर्म्ममार्गे न प्रवर्त्तेरन्, परस्परं विद्यावृद्धिं स्वतनयान् कन्याश्च शिक्षिताः कुर्य्युः ॥४३॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - कोणत्याही प्रकारच्या अधर्माकडे वळू नये असे उत्तम कर्म विद्वान स्त्रियांनी पती व इतर स्त्रियांना शिकवावे. स्त्री व पुरुष यांनी विद्येची वृद्धी करून मुले व मुली यांना शिक्षण द्यावे.