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आजि॑घ्र क॒लशं॑ म॒ह्या त्वा॑ विश॒न्त्विन्द॑वः। पुन॑रू॒र्जा निव॑र्त्तस्व॒ सा नः॑ स॒हस्रं॑ धुक्ष्वो॒रुधा॑रा॒ पय॑स्वती॒ पुन॒र्मावि॑शताद् र॒यिः ॥४२॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। जि॒घ्र॒। क॒लश॑म्। म॒हि॒। आ। त्वा॒। वि॒श॒न्तु॒। इन्द॑वः। पुनः॑। ऊ॒र्जा। नि। व॒र्त्त॒स्व॒। सा। नः॒। स॒हस्र॑म्। धु॒क्ष्व॒। उ॒रुधा॒रेत्यु॒रुऽधा॑रा। पय॑स्वती। पुनः॑। मा॒। आ। वि॒श॒ता॒त्। र॒यिः ॥४२॥

यजुर्वेद » अध्याय:8» मन्त्र:42


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब गृहस्थ के कर्म्म में स्त्री के उपदेश विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (महि) प्रशंसनीय गुणवाली स्त्री ! जो तू (उरुधारा) विद्या और अच्छी-अच्छी शिक्षाओं को अत्यन्त धारण करो (पयस्वती) प्रशंसित अन्न और जल रखनेवाली है, वह गृहाश्रम के शुभ कामों में (कलशम्) नवीन घट का (आजिघ्र) आघ्राण कर अर्थात् उसको जल से पूर्ण कर उस की उत्तम सुगन्ध को प्राप्त हो (पुनः) फिर (त्वा) तुझे (सहस्रम्) असंख्यात (इन्दवः) सोम आदि ओषधियों के रस (आविशन्तु) प्राप्त हों, जिससे तू दुःख से (निवर्तस्व) दूर रहे अर्थात् कभी तुझ को दुःख न प्राप्त हो। तू (ऊर्जा) पराक्रम से (नः) हम को (धुक्ष्व) परिपूर्ण कर (पुनः) पीछे (मा) मुझे (रयिः) धन (आविशतात्) प्राप्त हो ॥४२॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् स्त्रियों को योग्य है कि अच्छी परीक्षा किये हुए पदार्थ को जैसे आप खायें, वैसे ही अपने पति को भी खिलावें कि जिससे बुद्धि बल और विद्या की वृद्धि हो और धनादि पदार्थों को भी बढ़ाती रहें ॥४२॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ गृहस्थकर्म्मणि पत्न्युपदेशविषयमाह ॥

अन्वय:

(आ) (जिघ्र) (कलशम्) नूतनं घटम् (महि) महागुणविशिष्टे पत्नि (आ) (त्वा) (विशन्तु) (इन्दवः) सोमाद्योषधिरसाः (पुनः) (ऊर्जा) पराक्रमेण (नि) (वर्त्तस्व) (सा) (नः) अस्मान् (सहस्रम्) असंख्यम् (धुक्ष्व) प्रपूर्द्धि (उरुधारा) उर्वी धारा विद्यासुशिक्षाधारणा यस्याः सा (पयस्वती) प्रशस्तानि पयांस्यन्नान्युदकानि वा यस्यां सा (पुनः) (मा) माम् (आ) विशताम् (रयिः) धनम् ॥ अयं मन्त्रः (शत०४.५.८.६-९) व्याख्यातः ॥४२॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे महि पत्नि ! या त्वमुरुधारा पयस्वत्यसि, सा गृहस्थशुभकर्मसु कलशमाजिघ्र, पुनस्त्वा त्वां सहस्रमिन्दव आविशन्तु, पुनरूर्जा नोऽस्मान् धुक्ष्व, पुनर्म्मा मां रयिराविशतात्, यतस्त्वं दुःखान्निवर्त्तस्व ॥४२॥
भावार्थभाषाः - विदुषीणां स्त्रीणां योग्यताऽस्ति, यादृशान् सुपरीक्षितान् पदार्थान् स्वयं भुञ्जीरन्, तादृशानेव पत्ये दद्युः, यतो बुद्धिबलविद्यावृद्धिः स्यात्, धनादिपदार्थानामुन्नतिं च कुर्य्युः ॥४२॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या पदार्थांमुळे बुद्धी, बल व विद्या वाढेल आणि धनाची वृद्धी होईल असे पदार्थ विद्वान स्त्रियांनी स्वतः खावेत व आपल्या पतींना खाऊ घालावेत.