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मरु॑तो॒ यस्य॒ हि क्षये॑ पा॒था दि॒वो वि॑महसः। स सु॑गो॒पात॑मो॒ जनः॑ ॥३१॥

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पद पाठ

मरु॑तः। यस्य॑। हि। क्षये॑। पा॒थ। दि॒वः। वि॒म॒ह॒स॒ इति॑ विऽमहसः। सः। सु॒गो॒पात॑म॒ इति॑ सुऽगो॒पात॑मः। जनः॑ ॥३१॥

यजुर्वेद » अध्याय:8» मन्त्र:31


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अगले मन्त्र में भी गृहस्थधर्म्म का विषय कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (विमहसः) विविध प्रकार से प्रशंसा करने योग्य (मरुतः) विद्वान् गृहस्थ लोगो ! तुम (यस्य) जिस गृहस्थ के (क्षये) घर में सुवर्ण उत्तम रूप (दिवः) दिव्य गुण स्वभाव वा प्रत्येक कामों के करने की रीति को (पाथ) प्राप्त हो, (सः) (हि) वह (सुगोपातमः) अच्छे प्रकार वाणी और पृथिवी की पालना करनेवाला (जनः) मनुष्य सेवा के योग्य है ॥३१॥
भावार्थभाषाः - इस बात का निश्चय है कि ब्रह्मचर्य्य, उत्तम शिक्षा, विद्या, शरीर और आत्मा का बल, आरोग्य, पुरुषार्थ, ऐश्वर्य, सज्जनों का सङ्ग, आलस्य का त्याग, यम-नियम और उत्तम सहाय के विना किसी मनुष्य से गृहाश्रम धारा जा नहीं सकता। इसके विना धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि नहीं हो सकती, इसलिये इस का पालन सब को बड़े यत्न से करना चाहिये ॥३१॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरपि गार्हस्थ्यधर्मविषयमाह ॥

अन्वय:

(मरुतः) हिरण्यानि रूपाण्यृत्विजो विद्वांसश्च। मरुदिति हिरण्यनामसु पठितम्। (निघं०१.२) रूपनामसु पठितम्। (निघं०३.७) ऋत्विङ्नामसु पठितम्। (निघं०३.१) पदनामसु च। (निघं०५.५) (यस्य) गृहस्थस्य (हि) खलु (क्षये) गृहे (पाथ) प्राप्नुत। द्व्यचोऽतस्तिङः। (अष्टा०६.३.१३५) इति दीर्घः (दिवः) दिव्या गुणाः स्वभावाः क्रिया वा (विमहसः) विविधतया पूजनीयाः (सः) (सुगोपातमः) शोभनधर्म्मेण गां पृथिवीं वाचं वा पाति सोऽतिशयितः (जनः) प्रसिद्धः। अयं मन्त्रः (शत०४.५.२.१७) व्याख्यातः ॥३१॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे कृतविवाहा विमहस ऋत्विजो मरुतो गृहस्था ! यूयं यस्य गृहस्थस्य क्षये गृहे हिरण्यानि सुरूपाणि दिवः पाथ स हि सुगोपातमो जनः सदा सेव्यः ॥३१॥
भावार्थभाषाः - नहि केनचित् मनुष्येण किल ब्रह्मचर्य्यसुशिक्षाविद्याशरीरात्मबलारोग्यपुरुषार्थैश्वर्य्यसज्जन- सङ्गालस्यत्यागयमनियमसेवनसुसहायैर्विना गृहाश्रमो धर्तुं शक्यः। नह्येतेन विना धर्मार्थकाममोक्षसिद्धिर्भवितुं योग्या, तस्मादयं सर्वैः प्रयत्नेन सेवितव्यः ॥३१॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ब्रह्मचर्य, उत्तम शिक्षण, विद्या, शारीरिक व आत्मिक बल, आरोग्य, पुरुषार्थ, ऐश्वर्य, सज्जनांचा संग, आळशीपणाचा त्याग, यमनियम व उत्तम साह्य याखेरीज कोणत्याही माणसाचा गृहस्थाश्रम योग्य रीतीने चालू शकत नाही. (याशिवाय धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष यांची सिद्धी होऊ शकत नाही. त्यासाठी प्रयत्नपूर्वक वरील गोष्टींचे पालन केले पाहिजे. )