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अ॒ग्नेरनी॑कम॒पऽआवि॑वेशा॒पां नपा॑त् प्रति॒रक्ष॑न्नसु॒र्य᳖म्। दमे॑दमे स॒मि॑धं यक्ष्यग्ने॒ प्रति॑ ते जि॒ह्वा घृ॒तमुच्च॑रण्य॒त् स्वाहा॑ ॥२४॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्नेः। अनी॑कम्। अ॒पः। आ। वि॒वे॒श॒। अ॒पाम्। नपा॑त्। प्र॒ति॒रक्ष॒न्निति॑ प्रति॒ऽरक्ष॑न्। अ॒सु॒र्य्य᳖म्। दमे॑दम॒ इति॒ दमे॑ऽदमे। स॒मिध॒मिति॑ स॒म्ऽइध॑म्। य॒क्षि॒। अ॒ग्ने॒। प्रति॑। ते॒। जि॒ह्वा। घृ॒तम्। उत्। च॒र॒ण्य॒त्। स्वाहा॑ ॥२४॥

यजुर्वेद » अध्याय:8» मन्त्र:24


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजा और प्रजाजन गृहस्थों के लिये उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे गृहस्थ ! तू (अग्नेः) अग्नि की (अनीकम्) लपटरूपी सेना के प्रभाव और (अपः) जलों को (आ) (विवेश) अच्छी प्रकार समझ (अपाम्) उत्तम व्यवहार सिद्धि करानेवाले गुणों को जान कर (नपात्) अविनाशीस्वरूप ! तू (असुर्यम्) मेघ और प्राण आदि अचेतन पदार्थों से उत्पन्न हुए सुवर्ण आदि धन को (प्रतिरक्षन्) प्रत्यक्ष रक्षा करता हुआ (दमेदमे) घर-घर में (समिधम्) जिस क्रिया से ठीक-ठीक प्रयोजन निकले उसको (यक्षि) प्रचार कर और (ते) तेरी (जिह्वा) जीभ (घृतम्) घी का स्वाद लेवे। (स्वाहा) सत्यव्यवहार से (उत्) (चरण्यत्) देह आदि साधनसमूह सब काम किया करे ॥२४॥
भावार्थभाषाः - अग्नि और जल संसार के सब व्यवहारों के कारण हैं, इससे गृहस्थजन विशेष कर अग्नि और जल के गुणों को जानें और गृहस्थ के सब काम सत्य व्यवहार से करें ॥२४॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथोभयेषां गृहस्थानामुपदेशमाह ॥

अन्वय:

(अग्नेः) पावकस्य (अनीकम्) सैन्यमिव ज्वालासमूहम् (अपः) जलानि (आ) (विवेश) (अपाम्) आप्नुवन्ति याभिस्तासामुदकानाम् (नपात्) नाधःपतनशीलः (प्रति) (रक्षन्) पालयन् (असुर्य्यम्) असुरेषु मेघेषु प्राणक्रीडासाधनेषु भवं द्रव्यम् (दमेदमे) दाम्यन्ति जना यस्मिन् तस्मिन् गृहे गृहे। दम इति गृहनामसु पठितम्। (निघं०३.४) वीप्सया द्वित्वम् (समिधम्) समिध्यते प्रकाशयतेऽर्थतत्त्वमनया क्रियया ताम् (यक्षि) यजसि सङ्गच्छसे। अत्र बहुलं छन्दसि। (अष्टा०२.४.७३) इति शपो लुक् (अग्ने) विज्ञानयुक्त ! (प्रति) (ते) तव (जिह्वा) रसेन्द्रियम् (घृतम्) आज्यम् (उत्) (चरण्यत्) चरणमिवाचरेत्। वा छन्दसि। (अष्टा०भा०वा०१.४.९) इत्यत्राल्लोप ईत्वाऽभावश्च (स्वाहा) सत्यया क्रियया। अयं मन्त्रः (शत०४.४.५.१२) व्याख्यातः ॥२४॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे गृहस्थ ! त्वमग्नेरनीकमपश्चाविवेशापां न पात्वमसुर्यं प्रतिरक्षन् दमेदमे समिधं यक्षि, ते जिह्वा घृतमुत स्वाहोच्चरण्यत् ॥२४॥
भावार्थभाषाः - अग्निजले सर्वेषां सांसारिकपदार्थानां हेतू स्तः। अतो गृहस्थो विशेषतोऽनयोर्गुणान् ज्ञात्वा गृहस्थो सर्वाणि कार्य्याणि सत्यव्यवहारेण कुर्यात् ॥२४॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - अग्नी व जल हे जगाच्या व्यवहाराचे कारण व साधन आहेत. त्यामुळे गृहस्थाश्रमी लोकांनी अग्नी व जलाचे गुण विशेषकरून जाणून घ्यावेत व गृहस्थाश्रमातील सर्व कामे सत्यानेच करावीत.