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देवा॑ गातुविदो गा॒तुं वि॒त्त्वा गा॒तुमि॑त। म॒न॑सस्पतऽइ॒मं दे॑व य॒ज्ञꣳ स्वाहा॒ वाते॑ धाः ॥२१॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

देवाः॑। गा॒तु॒वि॒द॒ इति॑ गातुऽविदः। गा॒तुम्। वि॒त्त्वा। गा॒तुम्। इ॒त॒। मन॑सः। प॒ते॒। इ॒मम्। दे॒व॒। य॒ज्ञम्। स्वाहा॑। वाते॑। धाः॒ ॥२१॥

यजुर्वेद » अध्याय:8» मन्त्र:21


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी गृहस्थों का कर्म अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (गातुविदः) अपने गुण, कर्म और स्वभाव से पृथिवी के आने-जाने को जानने (देवाः) तथा सत्य और असत्य के अत्यन्त प्रशंसा के साथ प्रचार करनेवाले विद्वान् लोगो ! तुम (गातुम्) भूगर्भविद्यायुक्त भूगोल को (वित्त्वा) जान कर (गातुम्) पृथिवी राज्य आदि उत्तम कामों के उपकार को (इत) प्राप्त हूजिये। हे (मनसस्पते) इन्द्रियों के रोकनेहारे (देव) श्रेष्ठ विद्याबोधसम्पन्न विद्वानो ! तुममें से प्रत्येक विद्वान् गृहस्थ (स्वाहा) धर्म बढ़ानेवाली क्रिया से (इमम्) इस गृहाश्रम रूप (यज्ञम्) सब सुख पहुँचानेवाले यज्ञ को (वाते) विशेष जानने योग्य व्यवहारों में (धाः) धारण करो ॥२१॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थों को चाहिये कि अत्यन्त प्रयत्न के साथ भूगर्भ-विद्याओं को जान, इन्द्रियों को जीत, परोपकारी होकर और उत्तम धर्म्म से गृहाश्रम के व्यवहारों को उन्नति देकर सब प्राणीमात्र को सुखी करें ॥२१॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्गृहस्थकर्म्मविधिमाह ॥

अन्वय:

(देवाः) सत्यासत्यस्तावका गृहस्थाः (गातुविदः) स्वगुणकर्मस्वभावेन गातुं पृथ्वीं विदन्तः, गातुरिति पृथ्वीनामसु पठितम्। (निघं०१.१) (गातुम्) भूगर्भविद्यान्वितं भूगोलम् (वित्त्वा) विज्ञाय (गातुम्) पृथिवीराज्यादिनिष्पन्नमुपकारम् (इत) प्राप्नुत (मनसस्पते) निगृहीतमनाः (इमम्) प्राप्तम् (देव) दिव्यविद्याव्युत्पन्न (यज्ञम्) सर्वसुखावहं गृहाश्रमम् (स्वाहा) धर्म्यया क्रियया (वाते) विज्ञातव्ये व्यवहारे। वात इति पदनामसु पठितम्। (निघं०५.४) (धाः) धेहि। अत्राडभावः। अयं मन्त्रः (शत०४.४.४.१३) व्याख्यातः ॥२१॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे गातुविदो देवाः ! यूयं गातुं वित्त्वा गातुमित। हे मनसस्पते देव ! प्रतिगृहस्थस्त्वं स्वाहेमं यज्ञं वाते धाः ॥२१॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थानां योग्यतास्त्यतिप्रयत्नेन भूगर्भादिविद्याः संप्राप्य जितेन्द्रियाः परोपकारिणो भूत्वा सद्धर्म्मेण गृहाश्रमव्यवहारानुन्नीय सर्वान् प्राणिनः सुखयेयुः ॥२१॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - गृहस्थाश्रमी लोकांनी अत्यंत प्रयत्नपूर्वक भूगर्भविद्या जाणावी, इंद्रियांना जिंकावे. परोपकारी बनावे, उत्तम धर्माने युक्त होऊन गृहस्थाश्रमातील व्यवहार संपन्न करावेत आणि सर्व प्राणिमात्रांना सुखी करावे.