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व॒यꣳ हि त्वा॑ प्रय॒ति य॒ज्ञेऽअ॒स्मिन्नग्ने॒ होता॑र॒मवृ॑णीमही॒ह। ऋध॑गया॒ऽऋध॑गु॒ताश॑मिष्ठाः प्रजा॒नन् य॒ज्ञमुप॑याहि वि॒द्वान्त्स्वाहा॑ ॥२०॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

व॒यम्। हि। त्वा॒। प्र॒य॒तीति॑ प्रऽय॒ति। य॒ज्ञे। अ॒स्मिन्। अग्ने॑। होता॑रम्। अवृ॑णीमहि। इ॒ह। ऋध॑क्। अ॒याः॒। ऋध॑क्। उ॒त। अ॒श॒मि॒ष्ठाः॒। प्र॒जा॒नन्निति॑ प्रऽजा॒नन्। य॒ज्ञम्। उप॑। या॒हि॒। वि॒द्वान्। स्वाहा॑ ॥२०॥

यजुर्वेद » अध्याय:8» मन्त्र:20


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब व्यवहार करनेवाले गृहस्थ के लिये उपदेश अगले मन्त्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) ज्ञान देनेवाले (वयम्) हम लोग (इह) (प्रयति) इस प्रयत्नसाध्य (यज्ञे) गृहाश्रमरूप यज्ञ में (त्वा) तुझ को (होतारम्) सिद्ध करनेवाला (अवृणीमहि) ग्रहण करें (विद्वान्) सब विद्यायुक्त (प्रजानन्) क्रियाओं को जाननेवाले आप (ऋधक्) समृद्धिकारक (यज्ञम्) गृहाश्रमरूप यज्ञ को (स्वाहा) शास्त्रोक्त क्रिया से (उप) (याहि) समीप प्राप्त हो (उत) और केवल प्राप्त ही नहीं, किन्तु (अयाः) उस से दान, सत्सङ्ग, श्रेष्ठ गुणवालों का सेवन कर (हि) निश्चय करके (अस्मिन्) इस (ऋधक्) अच्छी ऋद्धि-सिद्धि के बढ़ानेवाले गृहाश्रम के निमित्त में (अशमिष्ठाः) शान्त्यादि गुणों को ग्रहण करके सुखी हो ॥२०॥
भावार्थभाषाः - सब व्यवहार करनेवालों को चाहिये कि जो मनुष्य जिस काम में चतुर हो, उस को उसी काम में प्रवृत्त करें ॥२०॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ व्यवहारिणे गृहस्थायोपदिशति ॥

अन्वय:

(वयम्) गृहाश्रमस्थाः (हि) यतः (त्वा) विद्वांसम् (प्रयति) प्रयत्यते जनैर्यस्तस्मिन्, कृतो बहुलम्। (अष्टा०वा०३.३.११३) इति कर्म्मणि क्विप् (यज्ञे) सम्यग्ज्ञातव्ये (अस्मिन्) (अग्ने) विज्ञापक विद्वन् ! (होतारम्) यज्ञनिष्पादकम् (अवृणीमहि) स्वीकुर्वीमहि, अत्र लिङर्थे लङ् (इह) अस्मिन् संसारे (ऋधक्) समृद्धिवर्द्धके (अयाः) यजेः सङ्गच्छस्व, अत्र लिङर्थे लङ् (ऋधक्) समृद्धिर्यथा स्यात् तथा (उत) अपि (अशमिष्ठाः) शमादिगुणान् गृहाण (प्रजानन्) (यज्ञम्) (उप) (याहि) उपगतं प्राप्नुहि (विद्वान्) वेत्ति यज्ञविद्याक्रियाम् (स्वाहा) शास्त्रोक्त्या क्रियया। अयं मन्त्रः (शत०४.४.४.१२) व्याख्यातः ॥२०॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! वयमिह प्रयति यज्ञे त्वा होतारमवृणीमहि, विद्वान् प्रजानँस्त्वमस्मानया ऋधग् यज्ञं स्वाहोपयाहि, उताप्युपयाहि ऋधगशमिष्ठाः ॥२०॥
भावार्थभाषाः - सर्वेषां व्यवहरतां योग्यतास्ति यो मनुष्यो यत्र कर्म्मणि विचक्षणः स तस्मिन्नेव कार्य्येऽभिप्रयोज्यः ॥२०॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व व्यवहारतज्ज्ञ माणसांना हे कळले पाहिजे की, जो मनुष्य ज्या कामात चतुर असेल त्याला त्याच कामात प्रवृत्त करावे.