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ओमा॑सश्चर्षणीधृतो॒ विश्वे॑ देवास॒ऽआग॑त। दा॒श्वासो॑ दा॒शुषः॑ सु॒तम्। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽसि॒ विश्वे॑भ्यस्त्वा दे॒वेभ्य॑ऽए॒ष ते॒ योनि॒र्विश्वे॑भ्यस्त्वा दे॒वेभ्यः॑ ॥३३॥

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पद पाठ

ओमा॑सः। च॒र्ष॒णी॒धृ॒तः॒। च॒र्ष॒णि॒धृ॒त॒ इति॑ चर्षणिऽधृतः। विश्वे॑। दे॒वा॒सः॒। आ। ग॒त॒। दा॒श्वासः॑। दा॒शुषः॑। सु॒तम्। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। विश्वे॑भ्यः। त्वा॒। दे॒वेभ्यः॑। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। विश्वे॑भ्यः। त्वा॒। दे॒वेभ्यः॑ ॥३३॥

यजुर्वेद » अध्याय:7» मन्त्र:33


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पढ़ने और पढ़ानेवालों का परस्पर व्यवहार अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (चर्षणीधृतः) मनुष्यों की पुष्टि-संतुष्टि करने और (ओमासः) उत्तम-उत्तम गुणों से रक्षा करने हारे (विश्वे) समस्त (देवासः) विद्वानो ! तुम (दाश्वांसः) उत्कृष्ट ज्ञान को देते हुए (दाशुषः) दान करनेवाले उत्तम जन का (सुतम्) जो अच्छे कामों के करने से ऐश्वर्य्य को प्राप्त होनेवाला है, उसके (आ, गत) सन्मुख आओ। हे उक्त दानशील पुरुष के पढ़नेवाले बालक ! तू (उपयामगृहीतः) पढ़ाने के नियमों से ग्रहण किया हुआ (असि) है, इसलिये (त्वा) तुझे (विश्वेभ्यः) समस्त (देवेभ्यः) विद्वानों के लिये अर्थात् उनकी सेवा करने को आज्ञा देता हूँ, जिसलिये (ते) तेरा (एषः) यह विद्या और अच्छी-अच्छी शिक्षा का संग्रह होना (योनिः) कारण है, इसलिये (त्वा) तुझे (विश्वेभ्यः) समस्त (देवेभ्यः) विद्वानों से विद्या और अच्छी-अच्छी शिक्षा दिलाता हूँ ॥३३॥
भावार्थभाषाः - सब विद्वान् और विदुषी स्त्रियों की योग्यता है कि समस्त बालक और कन्याओं के लिये निरन्तर विद्यादान करें, राजा और धनी आदि लोगों के धन आदि पदार्थों से अपनी जीविका करें और वे राजा आदि धनी जन भी विद्या और अच्छी शिक्षा से प्रवीण होकर अपने पढ़ानेवाले विद्वान् वा विदुषी स्त्रियों को धन आदि अच्छे-अच्छे पदार्थों को देकर उनकी सेवा करें। माता और पिता आठ-आठ वर्ष के पुत्र वा आठ-आठ वर्ष की कन्याओं को विद्याभ्यास, ब्रह्मचर्य्य सेवन और अच्छी शिक्षा किये जाने के लिये विद्वान् और विदुषी स्त्रियों को सौंप दें। वे भी विद्या ग्रहण करने में नित्य मन लगावें और पढ़ानेवाले भी विद्या और अच्छी शिक्षा देने में नित्य प्रयत्न करें ॥३३॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अध्यापकाध्येतॄणां परस्परं कर्त्तव्यमुपदिश्यते ॥

अन्वय:

(ओमासः) अवन्ति सद्गुणै रक्षन्ति ते (चर्षणीधृतः) चर्षणयो मनुष्यास्तान् धरन्ति पोषयन्ति ते। अन्येषामपि दृश्यते। (अष्टा०६.३.१३७) इति दीर्घः। (विश्वे) सर्वे (देवासः) विद्वांसः (आ) (गत) (दाश्वांसः) उत्कृष्टज्ञानं दत्तवन्तः। दाश्वान् साह्वान्०। (अष्टा०६.१.१२) इति निपातनम्। (दाशुषः) दानशीलस्योत्तमजनस्य (सुतम्) सवति सत्कर्मानुष्ठानेनैश्वर्य्यं प्राप्नोति तं बालकम् (उपयामगृहीतः) अध्यापननियमैः स्वीकृतः (असि) (विश्वेभ्यः) अखिलेभ्यः (त्वा) त्वाम् (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः (ते) तव (एषः) विद्याशिक्षासंग्रहः (ते) तव (योनिः) कारणम् (विश्वेभ्यः) अखिलेभ्यः (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः (त्वा) त्वाम् ॥ अयं मन्त्रः (शत०४.३.१.२७) व्याख्यातः ॥३३॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे चर्षणीधृत ओमासो विश्वे देवासो यूयं दाश्वांसो दाशुषः सुतमागत। हे दाशुष सुताध्येतस्त्वमुपयामगृहीतोऽसि। अतस्त्वा विश्वेभ्यो देवेभ्यस्तत्सेवनायाज्ञापयामि, यतस्त एष योनिरस्ति। अतस्त्वा विश्वेभ्यो देवेभ्यः शिक्षयामि ॥३३॥
भावार्थभाषाः - सर्वेषां विदुषीणां च योग्यतास्ति सर्वेभ्यो बालकेभ्यः कन्याभ्यश्चाहर्निशं विद्यादानं राज्ञां धनिनां च पदार्थैः स्वजीविकां च कुर्य्युः। ते राजानो धनिनश्च विद्यासुशिक्षाभ्यां प्रवीणा भूत्वा स्वस्याध्यापकेभ्यो विद्वद्भ्यो विदुषीभ्यश्च धनादिपदार्थान् दत्त्वा तेषां सेवनं कुर्य्युः। मातापितरावष्टवार्षिकुमारान् कुमारींश्च विद्याब्रह्मचर्य्यसेवनशिक्षाकरणाय विद्वद्भ्यो विदुषीभ्यश्च समर्प्पयेताम्। तेऽध्येतारो विद्याग्रहणे चेतो नित्यमभिदद्युस्तथाध्यापकांश्च विद्यासुशिक्षादाने नित्यं प्रयतेरन् ॥३३॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व विद्वान व विदुषी स्त्रियांनी सर्व बालके व बालिकांना नेहमी विद्यादान करावे. त्यांची उपजीविका राजा व श्रीमंत लोकांनी चालवावी. राजा व श्रीमंत लोकांनी विद्या शिकून शिक्षणात प्रवीण व्हावे व आपल्याला विद्या देणाऱ्या विद्वान व विदुषींना धन द्यावे. अशा प्रकारे त्यांची सेवा करावी. माता व पिता यांनी आठ वर्षांचा मुलगा व मुलगी यांना विद्याभ्यास, ब्रह्मचर्य पालन व चांगल्या शिक्षणासाठी विद्वान व विदुषींना सोपवावे. विद्यार्थ्यांनीही एकाग्रतेने विद्याध्ययन करावे व अध्यापकांनी विद्या व उत्तम शिक्षण देण्याचा प्रयत्न करावा.