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अच्छि॑न्नस्य ते देव सोम सु॒वीर्य॑स्य रा॒यस्पोष॑स्य ददि॒तारः॑ स्याम। सा प्र॑थ॒मा सँस्कृ॑तिर्वि॒श्ववा॑रा॒ स प्र॑थ॒मो वरु॑णो मि॒त्रोऽअ॒ग्निः ॥१४॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अच्छि॑न्नस्य। ते॒। दे॒व॒। सो॒म॒। सु॒वीर्य्य॒स्येति॑ सु॒ऽवीर्य्य॑स्य। रा॒यः। पोष॑स्य। द॒दि॒तारः॑। स्या॒म॒। सा। प्र॒थ॒मा। संस्कृ॑तिः। वि॒श्ववा॒रेति॑ वि॒श्वऽवा॑रा। सः। प्र॒थ॒मः। वरु॑णः। मि॒त्रः। अ॒ग्निः ॥१४॥

यजुर्वेद » अध्याय:7» मन्त्र:14


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब शिष्य के लिये पढ़ाने की युक्ति अगले मन्त्र में कही है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) योगविद्या चाहनेवाले (सोम) प्रशंसनीय गुणयुक्त शिष्य ! हम अध्यापक लोग (ते) तेरे लिये (सुवीर्य्यस्य) जिस पदार्थ से शुद्ध पराक्रम बढ़े उसके समान (अच्छिन्नस्य) अखण्ड (रायः) योगविद्या से उत्पन्न हुए धन की (पोषस्य) दृढ़पुष्टि के (ददितारः) देनेवाले (स्याम) हों। जो यह (प्रथमा) पहिली (विश्ववारा) सब ही सुखों के स्वीकार कराने योग्य (संस्कृतिः) विद्यासुशिक्षाजनित नीति है, (सा) वह तेरे लिये इस जगत् में सुखदायक हो और हम लोगों में जो (वरुणः) श्रेष्ठ (अग्निः) अग्नि के समान सब विद्याओं से प्रकाशित अध्यापक है (सः) वह (प्रथमः) सब से प्रथम तेरा (मित्रः) मित्र हो ॥१४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। योगविद्या में सम्पन्न शुद्धचित युक्त योगियों को योग्य है कि जिज्ञासुओं के लिये नित्य योगविद्या का दान देकर उन्हें शारीरिक और आत्मबल से युक्त किया करें ॥१४॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ शिष्यायाध्यापककृत्यमाह ॥

अन्वय:

(अच्छिन्नस्य) अखण्डितस्य (ते) तुभ्यं तव वा (देव) योगजिज्ञासो (सोम) प्रशस्तगुण शिष्य ! (सुवीर्य्यस्य) शोभनानि वीर्य्यणि पराक्रमाणि यस्मात् तस्येव (रायः) सर्वविद्याजनितस्य बोधधनस्य (पोषस्य) पुष्टेः (ददितारः) (स्याम) (सा) (प्रथमा) आदिमा (संस्कृतिः) विद्यासु शिक्षाजनिता नीतिः (विश्ववारा) सर्वैरेव स्वीकर्तुं योग्या (सः) (प्रथमः) (वरुणः) श्रेष्ठः (मित्रः) सखा (अग्निः) पावक इव देदीप्यमानः ॥ अयं मन्त्रः (शत०४.२.१.२२-२७) व्याख्यातः ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे देव सोम ! वयमध्यापकास्ते तुभ्यं सुवीर्य्यस्येवाच्छिन्नस्य रायस्पोषस्य ददितारः स्याम, या प्रथमा विश्ववारा संस्कृतिरस्ति, सा तुभ्यं सुखदा भवतु। योऽस्माकं मध्ये वरुणोऽग्निरिवाध्यापकोऽस्ति, स प्रथमस्ते मित्रो भवतु ॥१४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। योगविद्यासम्पन्नमनसां योगिनां योग्यतास्ति जिज्ञासुभ्यो नित्यं योगविद्यां प्रदाय ते सुशरीरात्मबलाः सम्पादनीयाः ॥१४॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. योगविद्येत प्रवीण शुद्ध चित्तयुक्त योग्यांनी जिज्ञासू लोकांना सदैव योग व विद्यादान करून त्यांना शारीरिक बलाने व आत्मबलाने युक्त करावे.