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प्रागपा॒गुद॑गध॒राक्स॒र्वत॑स्त्वा॒ दिश॒ऽआधा॑वन्तु। अम्ब॒ निष्प॑र॒ सम॒रीर्वि॑दाम् ॥३६॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्राक्। अपा॑क्। उद॑क्। अ॒ध॒राक्। स॒र्वतः॑। त्वा॒। दिशः॑। आ। धा॒व॒न्तु॒। अम्ब॑। निः। प॒र॒। सम्। अ॒रीः। वि॒दा॒म् ॥३६॥

यजुर्वेद » अध्याय:6» मन्त्र:36


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब उनके पुत्र क्या-क्या करें और वे पुत्रों को कैसे पालें, यह अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अम्ब) प्रेम से प्राप्त होनेवाली माता ! जो तेरी (अरीः) सन्तानादि प्रजा (प्राक्) पूर्व (अपाक्) पश्चिम (उदक्) उत्तर (अधराक्) दक्षिण और भी (सर्वतः) सब (दिशः) दिशाओं से (त्वा) तुझे (आ) (धावन्तु) धाय-धाय प्राप्त हों, उन्हें (निः) निरन्तर (पर) प्यार कर और वे भी तुझे (सम्) अच्छे भाव से जानें ॥३६॥
भावार्थभाषाः - माता और पिता को योग्य है कि अपने सन्तानों को विद्यादि अच्छे-अच्छे गुणों मे प्रवृत्त कराकर अच्छे प्रकार उन के शरीर की रक्षा करें अर्थात् जिससे वे नीरोग शरीर और उत्साह के साथ गुण सीखें और उन पुत्रों को योग्य है कि माता-पिता की सब प्रकार से सेवा करें ॥३६॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथैतयोरपत्यानि किं किं कुर्युस्तौ कथं पालयेयुरित्याह ॥

अन्वय:

(प्राक्) पूर्वस्याः (अपाक्) पश्चिमायाः (उदक्) उत्तरस्याः (अधराक्) दक्षिणस्याः (सर्वतः) अन्याभ्यः (त्वा) त्वाम् (दिशः) (आ) समन्तात् (धावन्तु) (अम्ब) अमति प्रेमभावेन प्राप्नोति तत्संबुद्धौ, अत्रोणादिर्बन् प्रत्ययः। (निः) नितराम् (पर) पालय (सम्) (अरीः) सुखप्रापिकाः प्रजाः (विदाम्) विदताम्, विद ज्ञान इत्यस्माल्लोटि प्रथमबहुवचने लोपस्त आत्मनेपदेषु। (अष्टा०७.१.४१) अनेन तकारलोपे सवर्णदीर्घे विदामिति रूपम् ॥ अयं मन्त्रः (शत०र३.९.४.२०-२३) व्याख्यातः ॥३६॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अम्ब ! त्वं या अरीः सुखप्रापिका प्रजास्ते प्रागपागुदगधराक् सर्वतो दिशस्त्वामाधावन्तु, तास्त्वं निष्पर नितरां रक्ष, ता अपि त्वा त्वां संविदां जानन्तु ॥३६॥
भावार्थभाषाः - मातापित्रोर्योग्यतास्ति स्वापत्यानि विद्यादिसद्गुणेषु नियोज्य निरन्तरं रक्षणीयानि, अपत्यानां योग्यतास्ति सर्वतः पित्रोः सेवनं कुर्य्युरिति ॥३६॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - आई-वडिलांनी आपल्या संतानांना विद्या शिकवून चांगल्या गुणांकडे प्रवृत्त करावे व त्यांच्या शरीराचे रक्षण करावे. अर्थात् त्यामुळे ते निरोगी, उत्साही व गुणी बनावेत. पुत्रांचे हे कर्तव्य आहे की, त्यांनी आपली माता व पिता यांची सेवा करावी.