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माहि॑र्भू॒र्मा पृदा॑कु॒र्नम॑स्तऽआतानान॒र्वा प्रेहि॑। घृ॒तस्य॑ कु॒ल्याऽउप॑ऽऋ॒तस्य॒ पथ्या॒ऽअनु॑ ॥१२॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा। अहिः॑। भूः॒। मा। पृदा॑कुः। नमः॑। ते॒। आ॒ता॒नेतेत्या॑ऽतान। अ॒न॒र्वा। प्र। इ॒हि॒। घृ॒तस्य॑। कु॒ल्याः। उप॑। ऋ॒तस्य॑। पथ्याः॑। अनु॑ ॥१२॥

यजुर्वेद » अध्याय:6» मन्त्र:12


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

वह विद्वान् कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (आतान) अच्छे प्रकार सुख से विस्तार करनेवाले विद्वान् ! तू (मा) मत (अहिः) सर्प के समान कुटिलमार्गगामी और (मा) मत (पृदाकुः) मूर्खजन के समान अभिमानी वा व्याघ्र के समान हिंसा करनेवाला (भूः) हो (ते) सब जगह तेरे सुख के लिये (नमः) अन्न आदि पदार्थ पहले ही प्रवृत्त हो रहे हैं और (अनर्वा) अश्व आदि सवारी के विना निराश्रय पुरुष जैसे (घृतस्य) जल की (कुल्याः) बड़ी धाराओं को प्राप्त हो, वैसे (ऋतस्य) सत्य के (पथ्याः) मार्गों को प्राप्त हो ॥१२॥
भावार्थभाषाः - किसी मनुष्य को कुटिलगामी सर्प आदि दुष्ट जीवों के समान धर्ममार्ग में कुटिल न होना चाहिये, किन्तु सर्वदा सरल भाव से ही रहना चाहिये ॥१२॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

स विद्वान् कीदृग्भवेदित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(मा) निषेधे (अहिः) सर्पवत् (भूः) भवेः, अत्र लिङर्थे लुङ्। (पृदाकुः) मूढवदभिमानी व्याधवद्वा हिंसकः (नमः) अन्नम्। नम इत्यन्ननामसु पठितम्। (निघं०२.७) (ते) तुभ्यम् (आतान) समन्तात् सुखं तनितः (अनर्वा) अश्वहीनः। अर्वेत्यश्वनामसु पठितम्। (निघं०१.१४) (प्र) प्रकृष्टार्थे (इहि) गच्छ (घृतस्य) उदकस्य (कुल्याः) घृतधाराः (उप) (ऋतस्य) सत्यस्य (पथ्याः) वीथीः (अनु) ॥ अयं मन्त्रः (शत०३.८.२.१-३) व्याख्यातः ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे आतान ! त्वं अहिर्माभूः पृदाकुर्माभूस्ते तुभ्यं नमोऽस्तु, सर्वत्र त्वत्सुखायान्नादिपदार्थः पुरत एव प्रवर्त्तत इति भावः। अनर्वा घृतस्य कुल्या इवर्तस्य पथ्या प्रोपैहि ॥१२॥
भावार्थभाषाः - केनापि मनुष्येण धर्ममार्गे कुटिलमार्गगामिसर्पादिवत्कुटिलाचरणेन न भवितव्यम्, किन्तु सर्वदा सरलभावेनैव भवितव्यम् ॥१२॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - कोणत्याही माणसाने धर्ममार्गाने चालताना कुटिल सर्प इत्यादी दुष्ट जीवांप्रमाणे वागू नये, तर सदैव सरळ मार्गाने वाटचाल करावी.