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मि॒त्रस्य॑ मा॒ चक्षु॑षेक्षध्व॒मग्न॑यः। सगराः॒ सग॑रा स्थ॒ सग॑रेण॒ नाम्ना॒ रौद्रे॒णानी॑केन पा॒त मा॑ग्नयः पिपृ॒त मा॑ग्नयो गोपा॒यत॑ मा॒ नमो॑ वोऽस्तु॒ मा मा॑ हिꣳसिष्ट ॥३४॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मित्र॒स्य॑। मा॒। चक्षु॑षा। ईक्ष॒ध्व॒म्। अग्न॑यः। स॒ग॒राः। स्थ॒। सग॑रेण। नाम्ना॑ रौद्रे॑ण। अनी॑केन। पा॒त। मा॒। अ॒ग्न॒यः॒। पि॒पृ॒त। मा॒। अग्न॑यः। गो॒पा॒यत॑ मा॒। नमः॑। वः॒। अ॒स्तु॒। मा। मा॒। हिं॒सि॒ष्ट॒ ॥३४॥

यजुर्वेद » अध्याय:5» मन्त्र:34


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् कैसे हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सगराः) अन्तरिक्ष अवकाश युक्त (अग्नयः) अच्छे-अच्छे पदार्थों को प्राप्त करनेवाले विद्वान् लोगो ! तुम (मा) मुझ को (मित्रस्य) मित्र की (चक्षुषा) दृष्टि से (ईक्षध्वम्) देखिये। आप (सगराः) विद्योपदेश अवकाशयुक्त (स्थ) हूजिये और जैसे आप (अग्नयः) संसाधित विद्युत् आदि अग्नियों की रक्षा करते हैं, वैसे (सगरेण) अन्तरिक्ष के साथ वर्त्तमान (रौद्रेण) शुत्रओं को रोदन करनेवाली (नाम्ना) प्रसिद्ध (अनीकेन) सेना से (मा) मुझे (पात) पालिये (अग्नयः) जैसे ज्ञानी लोग सब को सुख देते हैं, वैसे (पिपृत) सुखों से पूरण कीजिये (गोपायत) और सब ओर से पालन कीजिये और कभी (मा) मुझ को (मा हिंसिष्ट) नष्ट मत कीजिये (वः) इस से आप के लिये (मा) मेरा (नमः) नमस्कार (अस्तु) हो ॥३४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे विद्या देने से विद्वान् लोग सब मनुष्यों को सुखी करते हैं, वैसे इन विद्वानों को कार्यों के करने में चतुर और विद्यायुक्त होकर विद्यार्थी लोग सेवा से सुखी करें ॥३४॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः कीदृशाः सन्तीत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(मित्रस्य) सुहृदः (मा) माम् (चक्षुषा) दृष्ट्या (ईक्षध्वम्) संप्रेक्षध्वम् (अग्नयः) नेतारो नयन्ति श्रेष्ठान् पदार्थान् (सगराः) सगरोऽन्तरिक्षमवकाशो येषान्ते। अर्शआदित्वादच्। (सगराः) सगरोऽन्तरिक्षं विद्योपदेशावकाशो येषां ते (स्थ) भवत (सगरेण) अन्तरिक्षेण सह (नाम्ना) प्रसिद्ध्या (रौद्रेण) शत्रुरोदयितॄणामिदं तेन (अनीकेन) सैन्येन (पात) रक्षत (मा) माम् (अग्नयः) ज्ञानवन्तः (पिपृत) विद्यागुणैः पूर्णान् कुरुत (मा) माम् (अग्नयः) सभाध्यक्षादयः (गोपायत) पालयत (मा) माम् (नमः) नमस्कारः (वः) युष्मभ्यम् (अस्तु) भवतु (मा) निषेधे (मा) माम् (हिंसिष्ट) ॥३४॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वांस ! सगरा अग्नयो यूयं मां मित्रस्य चक्षुषेक्षध्वम्, यूयं सगराः स्थ। हे अग्नयः ! सगरेण रौद्रेण नाम्नानीकेन मां पात मां गोपायत मां मा हिंसिष्टैतदर्थं वो युष्मभ्यं नमोऽस्तु ॥३४॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा विद्यादानेन विद्वांसः सर्वान् मनुष्यान् सुखयन्ति, तथैतान् कार्य्येषु विद्ययोपयुक्ताः सन्तोऽध्येतारोऽपि सुखयन्तु ॥३४॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे विद्वान लोक विद्यादान करून सर्व माणसांना सुखी करतात तसे चतुर व ज्ञानसंपन्न बनून विद्यार्थ्यांनी विद्वानांची सेवा करून त्यांना सुखी करावे.