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सम्भू॑तिं च विना॒शं च॒ यस्तद्वेदो॒भय॑ꣳ स॒ह। वि॒ना॒शेन॑ मृ॒त्युं ती॒र्त्वा सम्भू॑त्या॒मृत॑मश्नुते ॥११ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सम्भू॑ति॒मिति॒ सम्ऽभू॑तिम्। च॒। वि॒ना॒शमिति॑ विऽना॒शम्। च॒। यः। तत्। वेद॑। उ॒भय॑म्। स॒ह ॥ वि॒ना॒शेनेति॑ विना॒शेन॑। मृ॒त्युम्। ती॒र्त्वा। सम्भू॒त्येति॒ सम्ऽभू॑त्या। अ॒मृत॑म्। अ॒श्नु॒ते॒ ॥११ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:40» मन्त्र:11


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को कार्य्यकारण से क्या-क्या सिद्ध करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो विद्वान् (सम्भूतिम्) जिसमें सब पदार्थ उत्पन्न होते उस कार्य्यरूप सृष्टि (च) और उसके गुण, कर्म, स्वभावों को तथा (विनाशम्) जिसमें पदार्थ नष्ट होते उस कारणरूप जगत् (च) और उसके गुण, कर्म, स्वभावों को (सह) एक साथ (उभयम्) दोनों (तत्) उन कार्य्य और कारण स्वरूपों को (वेद) जानता है, वह विद्वान् (विनाशेन) नित्यस्वरूप जाने हुए कारण के साथ (मृत्युम्) शरीर छूटने के दुःख से (तीर्त्वा) पार होकर (सम्भूत्या) शरीर, इन्द्रियाँ और अन्तःकरणरूप उत्पन्न हुई कार्यरूप धर्म में प्रवृत्त करानेवाली सृष्टि के साथ (अमृतम्) मोक्षसुख को (अश्नुते) प्राप्त होता है ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! कार्य्यकारणरूप वस्तु निरर्थक नहीं हैं, किन्तु कार्यकारण के गुण, कर्म और स्वभावों को जानकर धर्म आदि मोक्ष के साधनों में संयुक्त करके अपने शरीरादि कार्यकारण को नित्यत्व से जान के मरण का भय छोड़ कर मोक्ष की सिद्धि करो। इस प्रकार कार्य्यकारण से अन्य ही बल सिद्ध करना चाहिये। इन कार्य्यकारण का निषेध परमेश्वर के स्थान में जो उपासना उस प्रकरण में जानना चाहिये ॥११ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः कार्य्यकारणाभ्यां किं किं साधनीयमित्याह ॥

अन्वय:

(सम्भूतिम्) सम्भवन्ति यस्यां ता कार्य्याख्यां सृष्टिम् (च) तस्या गुणकर्मस्वभावान् (विनाशम्) विनश्यन्त्यदृश्याः पदार्था भवन्ति यस्मिन् (च) तद्गुणकर्म्मस्वभावान् (यः) (तत्) (वेद) जानाति (उभयम्) कार्य्यकारणस्वरूपं जगत् (सह) (विनाशेन) नित्यस्वरूपेण विज्ञातेन कारणेन सह (मृत्युम्) शरीरवियोगजन्यं दुःखम् (तीर्त्वा) उल्लङ्घ्य (सम्भूत्या) शरीरेन्द्रियान्तःकरणरूपयोत्पन्नया कार्य्यरूपया धर्म्ये प्रवर्त्तयित्र्या सृष्ट्या (अमृतम्) मोक्षम् (अश्नुते) प्राप्नोति ॥११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यो विद्वान् सम्भूतिं च विनाशं च सहोभयं तद्वेद, स विनाशेन सह मृत्युं तीर्त्वा सम्भूत्या सहामृतमश्नुते ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! कार्य्यकारणाख्ये वस्तुनी निरर्थके न स्तः, किन्तु कार्य्यकारणयोर्गुणकर्मस्वभावान् विदित्वा धर्मादिमोक्षसाधनेषु संप्रयोज्य स्वात्मकार्यकारणयोर्विज्ञातेन नित्यत्वेन मृत्युभयं त्यक्त्वा मोक्षसिद्धिं सम्पादयतेति कार्यकारणाभ्यामन्यदेव फलं निष्पादनीयमिति। अनयोर्निषेधो हि परमेश्वरस्थान उपासनाप्रकरणे वेदितव्यः ॥११ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! कार्यकारण्रूपी वस्तू निरर्थक नाहीत. त्यामुळे कार्यकारणाने गुण, कर्म, स्वभाव जाणून धर्म साधनांमध्ये संयुक्त करून आपले शरीर इत्यादी कार्यकारणाला नित्यत्वाने जाणून, मृत्यूचे भय दूर करून मोक्ष प्राप्त करा. या प्रकारे कार्यकारणाने अन्य फळ प्राप्त केले पाहिजे. परमेश्वराऐवजी कार्यकारणाची (जगत हे कार्य व प्रकृती हे कारण) उपासना केली जाते तेथे कार्यकारणाचा निषेध केला पाहिजे.