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उ॒ग्रश्च॑ भी॒मश्च॒ ध्वा᳖न्तश्च॒ धुनि॑श्च। सा॒स॒ह्वाँश्चा॑भियु॒ग्वा च॑ वि॒क्षिपः॒ स्वाहा॑ ॥७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒ग्रः। च॒। भी॒मः। च॒। ध्वा᳖न्त॒ इति॒ धुऽआ॑न्तः। च॒। धुनिः॑। च॒ ॥ सा॒स॒ह्वान्। स॒स॒ह्वानिति॑ सस॒ह्वान्। च॒। अ॒भि॒यु॒ग्वेत्य॑भिऽयु॒ग्वा। च॒। वि॒क्षिप॒ इति॑ वि॒क्षिपः॑। स्वाहा॑ ॥७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:39» मन्त्र:7


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कौन जीव किस गुणवाले हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! मरण को प्राप्त हुआ जीव (स्वाहा) अपने कर्म से (उग्रः) तीव्र स्वभाववाला (च) शान्त (भीमः) भयकारी (च) निर्भय (ध्वान्तः) अन्धकार को प्राप्त (च) प्रकाश को प्राप्त (धुनिः) काँपता (च) निष्कम्प (सासह्वान्) शीघ्र सहनशील (च) न सहनेवाला (अभियुग्वा) सब ओर से नियमधारी (च) सबसे अलग और (विक्षिपः) विक्षेप को प्राप्त होता है ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो जीव पापाचरणी हैं वे कठोर, जो धर्मात्मा हैं वे शान्त, जो भय देनेवाले वे भीम शब्द वाच्य, जो भय को प्राप्त हैं वे भीत शब्द वाच्य, जो अभय देनेवाले हैं वे निर्भय, जो अविद्यायुक्त हैं वे अन्धकार से झँपे, जो विद्वान् योगी हैं वे प्रकाशयुक्त, जो जितेन्द्रिय नहीं हैं वे चञ्चल, जो जितेन्द्रिय हैं वे चञ्चलतारहित अपने-अपने कर्मफलों को सहते-भोगते संयुक्त विक्षेप को प्राप्त हुए इस जगत् में नित्य भ्रमण करते हैं, ऐसा जानो ॥७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः के जीवाः किं गुणाः सन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(उग्रः) तीव्रस्वभावः (च) शान्तः (भीमः) बिभेति यस्मात् स भयंकरः (च) निर्भयः (ध्वान्तः) ध्वान्तमन्धकारं प्राप्तः (च) प्रकाशं गतः (धुनिः) कम्पमानः (च) निष्कम्पः (सासह्वान्) भृशं सहमानः (च) असहमानो वा (अभियुग्वा) योऽभितो युङ्क्ते सः (च) वियुक्तः (विक्षिपः) यो विक्षिपति विक्षेपं प्राप्नोति सः (स्वाहा) स्वकीयया क्रियया ॥७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! मरणं प्राप्तो जीवः स्वाहोग्रश्च ध्वान्तश्च धुनिश्च सासह्वांश्चाभियुग्वा च विक्षिपो जायते ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! ये जीवाः पापाचरणास्त उग्रा, ये धर्माचरणास्ते शान्ता, ये भयप्रदास्ते भीमा, ये भयं प्राप्तास्ते भीता, येऽजितेन्द्रियास्ते चञ्चला, ये जितेन्द्रियास्तेऽचञ्चलाः स्वस्वकर्मफलानि सहमानाः संयुक्ता विक्षेपं प्राप्ताः सन्तोऽत्र जगति नित्यं भ्रमन्तीति विजानीत ॥७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जे जीव पापाचरणी असतात ते उग्र व कठोर असतात व जे धर्मात्मा असतात ते शांत असतात. काही भयभीत करणारे तर काही निर्भय असतात. काही अविद्यायुक्त अंधःकारात असतात तर काही योगी व विद्वान वगैरे ज्ञान प्रकाशात असतात. जितेंद्रिय नसलेले चंचल व जितेंद्रिय असलेले चंचलतारहित असतात. याप्रमाणे आपापल्या कर्मफलांना भोगत, सहन करत अस्थिरपणे (इकडे-तिकडे भटकत) या जगात जीव भ्रमण करत असतात हे जाणा.