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वा॒चे स्वाहा॑ प्रा॒णाय॒ स्वाहा॑ प्रा॒णाय॒ स्वाहा॑। चक्षु॑षे॒ स्वाहा॒ चक्षु॑षे॒ स्वाहा॒ श्रोत्रा॑य॒ स्वाहा॒ श्रोत्रा॑य॒ स्वाहा॑ ॥३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वाचे। स्वाहा॑। प्रा॒णाय॑। स्वाहा॑। प्रा॒णाय॑। स्वाहा॑ ॥ चक्षु॑षे। स्वाहा॑। चक्षु॑षे। स्वाहा॑। श्रोत्रा॑य। स्वाहा॑। श्रोत्रा॑य। स्वाहा॑ ॥३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:39» मन्त्र:3


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग मरे हुए शरीर के (वाचे) वाणी इन्द्रिय सम्बन्धी होम के लिये (स्वाहा) सुन्दरक्रिया (प्राणाय) शरीर के अवयवों को जगत् के प्राणवायु में पहुँचाने को (स्वाहा) सत्यक्रिया (प्राणाय) धनञ्जय वायु को प्राप्त होने के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (चक्षुषे) एक नेत्रगोलक के जलाने के लिये (स्वाहा) सुन्दर आहुति (चक्षुषे) दूसरे नेत्रगोलक के जलाने को (स्वाहा) अच्छी आहुति (श्रोत्राय) एक कान के विभाग के लिये (स्वाहा) सुन्दर आहुति (श्रोत्राय) दूसरे कान के विभाग के लिये (स्वाहा) यह शब्द कर घी की आहुति चिता में छोड़ो ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - जो लोग सुगन्धियुक्त घृतादि सामग्री से मरे शरीर को जलावें, वे पुण्यसेवी होते हैं ॥३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(वाचे) वागिन्द्रियहोमाय (स्वाहा) (प्राणाय) शरीरस्याऽवयवान् जगत्प्राणे गमनाय (स्वाहा) (प्राणाय) धनञ्जयगमनाय (स्वाहा) (चक्षुषे) एकस्य चक्षुर्गोलकस्य दहनाय (स्वाहा) (चक्षुषे) इतरस्य नेत्रगोलकस्य दहनाय (स्वाहा) (श्रोत्राय) एकस्य श्रोत्रगोलकस्य विभागाय (स्वाहा) (श्रोत्राय) द्वितीयस्य श्रोत्रगोलकस्य विभागाय (स्वाहा) ॥३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यूयं मृतशरीरस्य वाचे स्वाहा प्राणाय स्वाहा प्राणाय स्वाहा चक्षुषे स्वाहा चक्षुषे स्वाहा श्रोत्राय स्वाहा स्वाहोक्ता घृताहुतीश्चितायां प्रक्षिपत ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - ये सुगन्धियुक्तेन घृतादिसम्भारेण मृतं शरीरं दाहयेयुस्ते पुण्यभाजो जायन्ते ॥३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक सुगंधी घृत सामग्री इत्यादी पदार्थांनी मृत शरीर जाळतात ते पुण्यवान असतात.