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य॒माय॒ स्वाहाऽन्त॑काय॒ स्वाहा॑ मृ॒त्यवे॒ स्वाहा॒ ब्रह्म॑णे॒ स्वाहा॑ ब्रह्मह॒त्यायै॒ स्वाहा॑ विश्वे॑भ्यो दे॒वेभ्यः॒ स्वाहा॒ द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॒ स्वाहा॑ ॥१३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

य॒माय॑। स्वाहा॑। अन्त॑काय। स्वाहा॑। मृ॒त्यवे॑। स्वाहा॑। ब्रह्म॑णे। स्वाहा॑। ब्र॒ह्म॒ह॒त्याया॒ इति॑ ब्रह्मऽह॒त्यायै॑। स्वाहा॑। विश्वे॑भ्यः। दे॒वेभ्यः॑। स्वाहा॑। द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॑म्। स्वाहा॑ ॥१३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:39» मन्त्र:13


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग (यमाय) नियन्ता न्यायाधीश वा वायु के लिये (स्वाहा) इस शब्द का (अन्तकाय) नाशकर्त्ता काल के लिये (स्वाहा) (मृत्यवे) प्राणत्याग करानेवाले समय के लिये (स्वाहा) (ब्रह्मणे) बृहत्तम अति बड़े परमात्मा के लिये वा ब्राह्मण विद्वान् के लिये (स्वाहा) (ब्रह्महत्यायै) ब्रह्म वेद वा ईश्वर वा विद्वान् की हत्या के निवारण के लिये (स्वाहा) (विश्वेभ्यः) सब (देवेभ्यः) दिव्य गुणों से युक्त विद्वानों वा जलादि के लिये (स्वाहा) और (द्यावापृथिवीभ्याम्) सूर्य्यभूमि के शोधने के लिये (स्वाहा) इस शब्द का प्रयोग करो ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य न्यायव्यवस्था का पालन कर अल्पमृत्यु को निवारण कर ईश्वर और विद्वानों का सेवन कर ब्रह्महत्यादि दोषों को छुड़ा के सृष्टिविद्या को जान के अन्त्येष्टिकर्म विधि करते हैं, वे सब के मङ्गल देनेवाले होते हैं। सब काल में इस प्रकार मृतशरीर को जला के सब के सुख की उन्नति करनी चाहिये ॥१३ ॥ इस अध्याय में अन्त्येष्टि कर्म का वर्णन होने से इस अध्याय में कहे अर्थ की पूर्व अध्याय के अर्थ के साथ संगति है, ऐसा जानना चाहिये ॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यश्रीविरजानन्दसरस्वतीस्वामिनां शिष्येण श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिना विरचिते यजुर्वेदभाष्ये संस्कृतार्य्यभाषाभ्यां समन्विते सुप्रमाणयुक्त एकोनचत्वारिंशत्तमोऽध्यायः पूर्त्तिमगमत् ॥३९॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(यमाय) नियन्त्रे न्यायाधीशाय वायवे वा (स्वाहा) (अन्तकाय) नाशकाय कालाय (स्वाहा) (मृत्यवे) प्राणत्यागकारिणे समयाय (स्वाहा) (ब्रह्मणे) बृहत्तमाय परमात्मने ब्रह्मविदुषे वा (स्वाहा) (ब्रह्महत्यायै) ब्रह्मणो वेदस्येश्वरस्य विदुषो वा हनननिवारणाय (स्वाहा) (विश्वेभ्यः) अखिलेभ्यः (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यो जलादिभ्यो वा (स्वाहा) (द्यावापृथिवीभ्याम्) सूर्य्यभूमिशोधनाय (स्वाहा) ॥१३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यूयं यमाय स्वाहाऽन्तकाय स्वाहा मृत्यवे स्वाहा ब्रह्मणे स्वाहा ब्रह्मत्यायै स्वाहा विश्वेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा द्यावापृथिवीभ्यां स्वाहा च प्रयुङ्ध्वम् ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या न्यायव्यवस्थां पालयित्वाऽल्पमृत्युं विनिवार्येश्वरविदुषः संसेव्य ब्रह्महत्यादिदोषान्निवार्य्य सृष्टिविद्यां विदित्वाऽन्त्येष्टिं विदधति, ते सर्वेषां मङ्गलप्रदा भवन्ति, सर्वदैवं मृतशरीरं दग्ध्वा सर्वेषां सुखमुन्नेयमिति ॥१३ ॥ अत्राऽन्त्येष्टिकर्मवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वाध्यायोक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेदितव्यम् ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे न्यायव्यवस्थेचे पालन करतात, अल्पमृत्यूचे निवारण करून ईश्वर व विद्वानांची संगती करतात. ब्रह्महत्या वगैरे दोषांपासून दूर होतात व सृष्टिविद्या जाणून अन्त्येष्टिकर्मविधी पार पाडतात ते सर्वांचे कल्याण करतात. या प्रकारे मृतक शरीराला जाळून सर्व सुखाची वाढ करावी.