य॒माय॒ स्वाहाऽन्त॑काय॒ स्वाहा॑ मृ॒त्यवे॒ स्वाहा॒ ब्रह्म॑णे॒ स्वाहा॑ ब्रह्मह॒त्यायै॒ स्वाहा॑ विश्वे॑भ्यो दे॒वेभ्यः॒ स्वाहा॒ द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॒ स्वाहा॑ ॥१३ ॥
य॒माय॑। स्वाहा॑। अन्त॑काय। स्वाहा॑। मृ॒त्यवे॑। स्वाहा॑। ब्रह्म॑णे। स्वाहा॑। ब्र॒ह्म॒ह॒त्याया॒ इति॑ ब्रह्मऽह॒त्यायै॑। स्वाहा॑। विश्वे॑भ्यः। दे॒वेभ्यः॑। स्वाहा॑। द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॑म्। स्वाहा॑ ॥१३ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
(यमाय) नियन्त्रे न्यायाधीशाय वायवे वा (स्वाहा) (अन्तकाय) नाशकाय कालाय (स्वाहा) (मृत्यवे) प्राणत्यागकारिणे समयाय (स्वाहा) (ब्रह्मणे) बृहत्तमाय परमात्मने ब्रह्मविदुषे वा (स्वाहा) (ब्रह्महत्यायै) ब्रह्मणो वेदस्येश्वरस्य विदुषो वा हनननिवारणाय (स्वाहा) (विश्वेभ्यः) अखिलेभ्यः (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यो जलादिभ्यो वा (स्वाहा) (द्यावापृथिवीभ्याम्) सूर्य्यभूमिशोधनाय (स्वाहा) ॥१३ ॥