तप॑से॒ स्वाहा॒ तप्य॑ते॒ स्वाहा॒ तप्य॑मानाय॒ स्वाहा॑ त॒प्ताय॒ स्वाहा॑ घ॒र्माय॒ स्वाहा॑। निष्कृ॑त्यै॒ स्वाहा॒ प्राय॑श्चित्यै॒ स्वाहा॑ भेष॒जाय॒ स्वाहा॑ ॥१२ ॥
तप॑से। स्वाहा॑। तप्य॑ते। स्वाहा॑। तप्य॑मानाय। स्वाहा॑। त॒प्ताय॑। स्वाहा॑। घ॒र्माय॑। स्वाहा॑ ॥ निष्कृ॑त्यै। निःऽकृ॑त्या॒ इति॒ निः॒ऽकृ॑त्यै। स्वाहा॑। प्राय॑श्चित्यै। स्वाहा॑। भे॒ष॒जाय॑। स्वाहा॑ ॥१२ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्यों को किन साधनों से सुख प्राप्त करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्यैः कैः साधनैः सुखं प्राप्तव्यमित्याह ॥
(तपसे) प्रतापाय (स्वाहा) (तप्यते) यस्तापं प्राप्नोति तस्मै (स्वाहा) (तप्यमानाय) प्राप्ततापाय (स्वाहा) (तप्ताय) (स्वाहा) (घर्माय) दिनाय (स्वाहा) (निष्कृत्यै) निवारणाय (स्वाहा) (प्रायश्चित्यै) पापनिवारणाय (स्वाहा) (भेषजाय) सुखाय। भेषजमिति सुखनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.६) (स्वाहा) ॥१२ ॥